रात और दिन दिया जले-शीर्षक गीत १९६७
मुकेश दोनों की आवाजों में उपलब्ध है.
आज सुनवाते हैं लता वाला संस्करण. हसरत जयपुरी के बोल हैं और
शंकर जयकिशन का संगीत.
गीत के बोल:
रात और दिन दिया जले
मेरे मन में फिर भी अंधियारा है
जाने कहाँ है वो साथी
तू जो मिले जीवन उजियारा है
रात और दिन
पग पग मन मेरा ठोकर खाए
चाँद सूरज भी राह न दिखाए
ऐसा उजाला कोई मन में समाए
जिससे पिया का दर्शन मिल जाए
रात और दिन दिया जले
मेरे मन में फिर भी अंधियारा है
जाने कहाँ है वो साथी
तू जो मिले जीवन उजियारा है
रात और दिन
गहरा ये भेद कोई मुझको बताये
किसने किया है मुझ पर अन्याय
जिसका ही दीप वो बुझ नहीं पाये
ज्योति दिये की दूजे घर को सजाए
रात और दिन दिया जले
मेरे मन में फिर भी अंधियारा है
जाने कहाँ है वो साथी
तू जो मिले जीवन उजियारा है
रात और दिन
खुद नहीं जानूँ ढूँढे किसको नज़र
कौन दिशा है मन की डगर
कितना अजब है ये दिल का सफ़र
जियरा में आए जैसे कोई लहर
रात और दिन दिया जले
मेरे मन में फिर भी अंधियारा है
जाने कहाँ है वो साथी
तू जो मिले जीवन उजियारा है
रात और दिन
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Raat aur din diya jale-Titlesong 1967
Artist: Nargis
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