तुम कहाँ ले चले हो-पूनम की रात १९६५
फिल्म से. इसे शैलेन्द्र ने लिखा और सलिल चौधरी ने संगीत
से संवारा.
इसे सुन कर कहाँ ले चले हो बता दो मुसाफिर की याद आती
है. प्रस्तुत गीत में मुसाफिर की जगह सजन है. गीत में कुछ
जगह ऐसा लगता है शब्द ज्यादा हो रहे हैं किसी किसी पंक्ति
में, जैसा कि आजकल के गीतों में देखने को मिलता है.
गीत के बोल:
तुम कहाँ ले चले हो सजन अलबेले
ये कौन सा जहाँ है बताओ तो
बताओ तो
ये सफ़र अनजाना ये प्यार की हैं राहें
ज़रा संग मेरे तुम आओ तो
तुम आओ तो
तुम कहाँ ले चले हो
तुमने आँखों से क्या जादू डाला
मन मेरा हुआ मतवाला सजन
तुमने आँखों से क्या जादू डाला
मन मेरा हुआ मतवाला साँवरिया
हम तुम दम भर कहीं रुक जाओ तो
ये सफ़र अनजाना ये प्यार की हैं राहें
ज़रा संग मेरे तुम आओ तो
तुम आओ तो
तुम कहाँ ले चले हो सजन अलबेले
ये कौन सा जहाँ है बताओ तो
बताओ तो
तुम कहाँ ले चले हो
अभी झूमेंगी देखना फ़िज़ाएँ
गुनगुनाने लगेंगी हवाएँ सनम
अभी झूमेंगी देखना फ़िज़ाएँ
गुनगुनाने लगेंगी हवाएँ
ज़रा तुम प्यार का ये तराना
मेरे संग गाओ तो
तुम कहाँ ले चले हो सजन अलबेले
ये कौन सा जहाँ है बताओ तो
बताओ तो
ये सफ़र अनजाना ये प्यार की हैं राहें
ज़रा संग मेरे तुम आओ तो
तुम आओ तो
तुम कहाँ ले चले हो
छुप जायेगी शाम सुहानी
बन जायेगी एक कहानी
लजा के
छुप जायेगी शाम सुहानी
बन जायेगी एक कहानी
सिमट कर मेरी दोनों बाँहों में तुम
शरमाओ तो
तुम कहाँ ले चले हो सजन अलबेले
ये कौन सा जहाँ है बताओ तो
बताओ तो
ये सफ़र अनजाना ये प्यार की हैं राहें
ज़रा संग मेरे तुम आओ तो
तुम आओ तो
तुम कहाँ ले चले हो
…………………………………………..
Tum kahan le chale ho-Poonam ki raat 1965
0 comments:
Post a Comment