हाय हाय ये मजबूरी-रोटी कपड़ा और मकान १९७४
सावन तो अनमोल है ये इस गीत के माध्यम से समझें.
फ़िल्मी नायक को नौकरी नहीं मिली तो क्या छोकरी
तो मिल गई. ऐसे लुभावने दृश्य फिल्मों में ही ज्यादा
दिखलाई देते हैं.
गीत अपने समय का चर्चित गीत है और इसमें बरसात
भी हो रही है. हिंदी फ़िल्मी बरसात और नायिकाओं पर
एक मोटी सी किताब लिखी जा सकती है. हो सकता है
किसी किताब लिखने वाले ने इस पर कार्य भी शुरू कर
दिया हो.
गीत वर्मा मालिक का है और इसे लता मंगेशकर ने गाया
है लक्ष्मी प्यारे के संगीत निर्देशन में.
गीत के बोल:
अरे हाय हाय ये मजबूरी
ये मौसम और ये दूरी
अरे हाय हाय हाय मजबूरी
ये मौसम और ये दूरी
मुझे पल पल है तड़पाये
तेरी दो टकियाँ दी नौकरी वे मेरा लाखों का सावन जाये
हाय हाय ये मजबूरी
ये मौसम और ये दूरी
कितने सावन बीत गये
कितने सावन बीत गये बैठी हूँ आस लगाये
जिस सावन में मिले सजनवा वो सावन कब आये
कब आये
मधुर मिलन का ये सावन हाथों से निकला जाये
तेरी दो टकियाँ दी नौकरी वे मेरा लाखों का सावन जाये
हाय हाय ये मजबूरी
ये मौसम और ये दूरी
प्रेम का ऐसा बंधन है
प्रेम का ऐसा बंधन है जो बंध के फिर ना टूटे
अरे नौकरी का है क्या भरोसा आज मिले कल छूटे
कल छूटे
अम्बर पे है रचा स्वयंवर फिर भी तू घबराये
तेरी दो टकियाँ दी नौकरी वे मेरा लाखों का सावन जाये
रंग डिंग डांग डिंग डांग डांग डांग डांग
रंग डिंग डांग डिंग डांग डांग डांग डांग
मुझे पल पल है तड़पाये
तेरी दो टकियाँ दी नौकरी वे मेरा लाखों का सावन जाये
हाय हाय ये मजबूरी
ये मौसम और ये दूरी
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Haye haye ye majboori-Roti kapda aur makan 1974
Artists: Zeenat Aman, Manoj Kumar
3 comments:
हाँ, हम लिख रहे हैं
हम थीसिस लिख रहे हैं
हमें खुशी है हमारा छोटा सा योगदान किसी के काम आ रहा है.
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