गगन ये समझे चाँद-सावन को आने दो १९७९
को दिखाई नहीं देती. कितना पसीना बहा, कितने पापड बिले
ये सब अनजान रह जाता है. जो तस्वीर सामने दिखती है
वो चमकते दमकते सफल व्यक्तित्व की.
मेहनत और मेनिपुलेशन दो तरीके हैं ऊपर चढ़ने के. जिसके
जो तरीका समझ आ जाए और हाथ लग जाए. मेहनत वाले
रास्ते में रफ़्तार धीमी हो सकती है मगर धड़ाम से गिरने का
खतरा कम से कम होता है.
फिल्म का नायक कुछ सार्थक करने के उद्देश्य से शहर आता
है और यहाँ उसे हाथ रिक्शा चलने का काम मिल जाता है
जिस पर वो माल धुलाई करता है. काम करते हुए भी वो अपना
शौक-गाना को जिंदा रखता है. आगे चल के यही आवाज़ किसी
कद्रदान के कानों में पड़ेगी और उसकी किस्मत खुल जायेगी.
लखनऊ शहर की सड़कें और गलियां हैं इस गीत में.
गीत मदन भारती का लिखा हुआ है और इसे जसपाल सिंह ने
गाया है. संगीत राजकमल का है.
गीत के बोल:
आ हा हा आ आ आ आ हा हा आ आ आ
आ हा हा आ आ आ आ हा हा आ आ आ
आ हा हा आ आ आ आ हा हा आ आ आ
गगन ये समझे चाँद सुखी है
चंदा कहे सितारे
गगन ये समझे चाँद सुखी है
चंदा कहे सितारे
दरिया की लहरें ये समझे
हमसे सुखी किनारे
ओ साथी दुःख में ही सुख है छिपा रे
ओ साथी दुःख में ही सुख है छिपा रे
भैया रे साथी रे
भैया रे ओ साथी रे
दूर के पर्वत दूर ही रह कर लगते सबको सुहाने
पास अगर जा कर देखें तो पत्थर की चट्टानें
दूर के पर्वत दूर ही रह कर लगते सबको सुहाने
पास अगर जा कर देखें तो पत्थर की चट्टानें
कलियाँ समझे चमन सुखी है
चमन कहे रे बहारें
ओ साथी दुःख में ही सुख है छिपा रे
ओ साथी दुःख में ही सुख है छिपा रे
भैया रे साथी रे
भैया रे हो साथी रहो
हो ओ ओ ओ ओ ओ
हे राम हो हे रामा
रात अंधेरी हे रामा
रात अँधेरी सोचे मन में है दिन में उजियारा
दिन की गरमी सोच रही है है शीतल अंधियारा
ओ साथी है शीतल अंधियारा
रात अँधेरी सोचे मन में है दिन में उजियारा
दिन की गरमी सोच रही है है शीतल अंधियारा
ओ साथी है शीतल अंधियारा
पतझड़ समझे सुखी है सावन
सावन कहे अंगारे
ओ साथी दुःख मे ही सुख है छिपा रे ओ साथी
दुःख मे ही सुख है छिपा रे
…………………………………………………………………
Gagan ye samjhe chand sukhi-Sawan ko aane do 1979
Artist: Arun Govil
0 comments:
Post a Comment