Oct 9, 2017

यही अरमान ले कर आज-शबाब १९५४

सन १९५४ की फिल्म शबाब में कुछ बेहतरीन गीत हैं जिनमें
से कुछ आपने सुने हैं अभी तक. बाकी के भी सुनवाए देते हैं
एक एक कर के.

अगला गीत है शकील बदायूनीं का लिखा, नौशाद का संगीत से
संवारा और रफ़ी का गाया हुआ. फिर से एक बार बतला दें कि
फिल्म के प्रमुख कलाकार हैं भारत भूषण और नूतन.




गीत के बोल:

लाई हयात आये कज़ा ले चली चले
अपनी खुशी ना आये ना अपनी खुशी चले

यही अरमान ले कर आज  अपने घर से हम निकले
जहाँ है ज़िंदगी अपनी  उसी कूचे में धम निकले

सितारों जगमगाओ तुम  बहारों मुस्कुराओ तुम
मेरी उजड़ी मुहब्बत की  हँसी मिल कर उड़ाओ तुम
हँसी मिल कर उड़ाओ तुम
जिन्हें सजदे किए हमने 
जिन्हें सजदे किए हमने  वो पत्थर के सनम निकले
वो पत्थर के सनम निकले
जहाँ है ज़िंदगी अपनी  उसी कूचे में बम निकले

तमन्ना यही है अब तो  मेरा सर हो तेरा दर हो
न आँसू कोई आँखों में  न शिकवा कोई लब पर हो
न शिकवा कोई लब पर हो
अगर यूँ मौत आ जाए
अगर यूँ मौत आ जाए तो अपने दिल से ग़म निकले
तो अपने दिल से ग़म निकले

यही अरमान ले कर आज  अपने घर से हम निकले
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Yahi armaan le kar-Shabab 1954

Artist: Bharat Bhushan

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