ज़िन्दगी में जब तुम्हारे ग़म नहीं थे-दूरियां १९७९
में बंगाली सिनेमा जगत के सुप्रसिद्ध कलाकार उत्तम कुमार मौजूद हैं
बतौर नायक. साथ में शर्मिला टैगोर नायिका हैं. इन दोनों पर ही ये
गीत फिल्माया गया है. इसे अनुराधा पौडवाल और भूपेंद्र ने गाया है.
गीत काफी चर्चित रहा था अपने समय में. आज भी इसे कभी कभार
सुनवा दिया जाता है रेडियो चैनलों पर. ७० और ८० के दशक की काफी
सारी ऑफ-बीट और आड़े-टेढ़े नाम वाली फिल्मों में जयदेव ने संगीत
दिया है जिनमें ‘किस्सा कुर्सी का’ फिल्म भी शामिल है.
सुनते हैं सुदर्शन फाकिर की ये रचना. वक्त पढ़ने पर खुशकिस्मतों को
ही अपनों से मदद मिला करती है. विकट प्रारब्ध वालों के लिए ऊपर
वाला दूसरा रास्ता खोल कर रखता है जिसमें अजनबी ही ज्यादा
मददगार हुआकरते हैं.
ये आपने भी महसूस किया होगा कि जिंदगी में क्वालिटी की मदद और
समय पर काम आने वाली मदद हमेशा अनजान लोगों से मिला करती
है.
गीत के बोल:
ज़िन्दगी में जब तुम्हारे ग़म नहीं थे
ज़िन्दगी में जब तुम्हारे ग़म नहीं थे
इतने तन्हा
इतने तन्हा थे कि हम भी हम नहीं थे
वक़्त पर जो लोग काम आए हैं अक्सर
वक़्त पर जो
वक़्त पर जो लोग काम आए हैं अक्सर
अजनबी थे वो मेरे हमदम नहीं थे
अजनबी थे वो मेरे हमदम नहीं थे
ज़िन्दगी में जब तुम्हारे ग़म नहीं थे
ज़िन्दगी में
बेसबब था तेरा मिलना रहगुज़र में
बेसबब था तेरा मिलना रहगुज़र में
रहगुज़र में
हादसे हर मोड़ पर कुछ कम नहीं थे
हादसे हर मोड़ पर कुछ कम नहीं थे
ज़िन्दगी में जब तुम्हारे ग़म नहीं थे
ज़िन्दगी में
हमने ख़्वाबों में ख़ुदा बन कर भी देखा
हमने ख़्वाबों में ख़ुदा बन कर भी देखा
आप थे बाहों में दो आलम नहीं थे
आप थे बाहों में दो आलम नहीं थे
ज़िन्दगी में जब तुम्हारे ग़म नहीं थे
ज़िन्दगी में
सामने दीवार थी ख़ुद्दारियों की
सामने दीवार थी ख़ुद्दारियों की
वरना रस्ते प्यार के पुरख़म नहीं थे
वरना रस्ते प्यार के पुरख़म नहीं थे
ज़िन्दगी में जब तुम्हारे ग़म नहीं थे
इतने तन्हा
इतने तन्हा थे कि हम भी हम नहीं थे
ज़िन्दगी में
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Zindagi mein jab tumhare gham-Dooriyan 1978
Artists: Uttam Kumar, Sharmila Tagore

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