फिर वही दर्द है-अपराधी कौन १९५७
पुट है इस गीत में. गीतकार क्या लिखना चाहता है और उससे
फिल्मवाले क्या लिखवाते हैं उसमें बड़ा फर्क होता है. हाँ, बीच बीच
में वो अपनी लेखनी का कमाल दिखला ही जाता है चुपके से.
गायकी मन्ना डे ने जितनी आसान बनाई उतनी शायद किसी ने
सपने में भी ना सोची होगी. सलिल चौधरी भी एक कमाल के
संगीतकार थे. सभी विधाओं में पारंगत. उन्हें कोम्प्लेक्स किस्म की
ध्वनियाँ ज्यादा प्रिय थीं. मजे कि बात ये है वो सारा कोम्प्लेक्स
मिक्सचर सुनने में बड़ा ही सरल मालूम पड़ता.
आप चाहे जो समझ लें मगर किसी हास्य गीत को फिल्माना आसान
काम नहीं होता, जब उसे सोबर भी रखना हो और ये भी कि वो
कहीं बोर ना बन जाए. असरार हसन खान उर्फ मजरूह साहब ने
अपना कलम वाला नाम मजरूह(जिसका अर्थ है-hurt, smitten).
उनकी सबसे बड़ी खूबी थी प्रासंगिक बने रहना.
उनके ऊपर एक अच्छा आलेख इधर है-अक्षय मनवानी की नज़र
में मजरूह. अक्षय ने मजरूह के पॉपुलर गीत सुन कर ये सब लिखा है
या फिर वे क्या कहना चाहते हैं उसके उदाहरण देने के लिए उन्होंने
पॉपुलर गीत ही चुने, खैर जो भी मसला हो, आर्टिकल अच्छा है और
उसमें मजरूह की लेखनी के लगभग सारे पहलू उन्होंने कवर कर लिए
हैं. उन्हें, मगर, मजरूह के, अभी और भी गीत सुनने की आवश्यकता है.
गीत के बोल:
फिर वही दर्द है फिर वही जिगर
फिर वही रात है फिर वही है डर
हम समझे गम कर गया सफर
द्वार दिल का खुल गया
हाथी निकल गया
दुम रह गयी मगर
फिर वही दर्द है फिर वही जिगर
फिर वही रात है फिर वही है डर
हम समझे गम कर गया सफर
द्वार दिल का खुल गया
हाथी निकल गया
दुम रह गयी मगर
हम तो समझे दुश्मनों का हाथ कट गया
दो दिलों के बीच से पहाड़ हट गया
हम तो समझे दुश्मनों का हाथ कट गया
दो दिलों के बीच से पहाड़ हट गया
गम के भारी दिन गए गुजर
द्वार दिल का खुल गया
हाथी निकल गया
दुम रह गयी मगर
फिर वही दर्द है फिर वही जिगर
फिर वही रात है फिर वही है डर
तू दुल्हन बनेगी और छेड़ेगी रागिनी
तू दुल्हन बनेगी और छेड़ेगी रागिनी
आई प्यार के मधुर मिलन की चांदनी
तू दुल्हन बनेगी और छेड़ेगी रागिनी
आई प्यार के मधुर मिलन की चांदनी
लेकिन थोड़ी रह गयी कसर
द्वार दिल का खुल गया
हाथी निकल गया
दुम रह गयी मगर
फिर वही दर्द है फिर वही जिगर
फिर वही रात है फिर वही है डर
हम समझे गम कर गया असर
द्वार दिल का खुल गया
हाथी निकल गया
दुम रह गयी मगर
मैंने चाहा भूल जाऊं क्यूँ रहूँ खराब
पर तेरा ये हुस्न जैसे दाल में गुलाब
मैंने चाहा भूल जाऊं क्यूँ रहूँ खराब
पर तेरा ये हुस्न जैसे दाल में गुलाब
थोडा थोडा है वही असर
द्वार दिल का खुल गया
हाथी निकल गया
दुम रह गयी मगर
फिर वही दर्द है फिर वही जिगर
फिर वही रात है फिर वही है डर
हम समझे गम कर गया सफर
द्वार दिल का खुल गया
हाथी निकल गया
दुम रह गयी मगर
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Phir wahi dard hai-Apradhi Kaun 1957
Artists: Dhumal, Kumud Tripathi, Lilian
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