ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा-गुलाम अली
सैफुद्दीन सैफ की रचना है और इसका संगीत तैयार किया है
रफीक हुसैन ने. इसे हमने लम्हा लम्हा नामक एल्बम में सुना
है.
इसे हम ग़ज़ल कह सकते हैं क्यूंकि इसमें लिखने वाले का नाम
आता है. आपका क्या ख्याल है पाठकों ?
गीत के बोल:
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
घड़ी दो घड़ी मुस्कुराना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
बहुत बच के निकले मगर क्या ख़बर थी
बहुत बच के निकले मगर क्या ख़बर थी
बहुत बच के निकले मगर क्या ख़बर थी
इधर भी तेरा आस्ताना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
चलो मयकदे में बसेरा ही कर लो
चलो मयकदे में बसेरा ही कर लो
चलो मयकदे में बसेरा ही कर लो
न आना पड़ेगा न जाना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
नहीं भूलता 'सैफ़' अहदे-तमन्ना
नहीं भूलता 'सैफ़' अहदे-तमन्ना
नहीं भूलता 'सैफ़' अहदे-तमन्ना
मगर रफ़्ता रफ़्ता भुलाना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
घड़ी दो घड़ी मुस्कुराना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
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Gham-e-dil kisi se chhupana-Ghulam Ali Non film song
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