वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था-जगजीत सिंह
गुलज़ार की रचना है और संगीत स्वयं जगजीत सिंह का है.
कभी कभी ये समझने में मुश्किल होती है कि गीत है या नज़्म,
कविता है या ग़ज़ल. समझ आना चाहिए और आनंद आना चाहिए.
ब्रेड पकोडा खाओ, सैंडविच या ब्रेड रोल अगर आनंद तीनों में आये
तो तीनो खाओ. है ना दोस्तों !
गीत के बोल:
वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था
वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था
कुछ और भी हो गया नुमाया
कुछ और भी हो गया नुमाया
मैं अपना लिखा मिटा रहा था
मैं अपना लिखा मिटा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था
उसी का ईमान बदल गया है
उसी का ईमान बदल गया है
कभी जो मेरा खुदा रहा था
कभी जो मेरा खुदा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था
वो एक दिन एक अजनबी को
वो एक दिन एक अजनबी को
मेरी कहानी सुना रहा था
मेरी कहानी सुना रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
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Wo khat ke purze-Jagjit Singh Non film
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