मासूम दिल की हाँ पे-माशूका १९५३
उनकी पुरानी फिल्मों के गीत भी अवश्य सुनना चाहिए. पिछले
पोस्ट में जगजीत सिंह के गीत के साथ ही ये गीत भी याद
आ गया मुकेश का जो फिल्म माशूका के लिए उन्होंने गाया
था. फिल्म माशूका के साउंड-ट्रेक में विभिन्न प्रकार के गीत
मौजूद हैं.
शैलेन्द्र की रचना है अर्थात इस गीत को शैलेन्द्र ने लिखा है.
मुखड़े के पहले दो पंक्तियाँ हैं जो शायद उस समय का ट्रेंड था.
आपको उस समय के बहुतेरे गीतों में ऐसा मिलेगा.
गीत के बोल:
ज़मीं भी चुप है आसमाँ भी चुप है
किसी की दुनिया उजड़ रही है
बता ऐ मालिक ये कैसी क़िस्मत
जो बनते बनते बिगड़ रही है
मासूम दिल की हाँ पे ना कह दिया किसी ने
और बस इसी बहाने ग़म दे दिया किसी ने
बाद-ए-सबा जो आई और फूल मुस्कुराये
फूल मुस्कुराये
बाद-ए-सबा जो आई और फूल मुस्कुराये
फूल मुस्कुराये
सहला के ज़ख़्म मेरे बहला दिया किसी ने
और बस इसी बहाने ग़म दे दिया किसी ने
मालूम क्या था हमको है रंज-ओ-ग़म की दुनिया
रंज-ओ-ग़म की दुनिया
मालूम क्या था हमको है रंज-ओ-ग़म की दुनिया
रंज-ओ-ग़म की दुनिया
सौ सौ सितम उठाये दो दिन की ज़िन्दगी में
और बस इसी बहाने ग़म दे दिया किसी ने
मासूम दिल की हाँ पे ना कह दिया किसी ने
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Masoom dil ki haan pe-Mashooqa 1953
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