मचल के जब भी आँखों से-गृह प्रवेश १९७९
या क्रिटिकली ऐक्लेडम्ड फ़िल्में वे होती हैं जो अलग हट के होती हैं और
बॉक्स ऑफिस से भी अलग हट के खड़ी मिलती हैं. जिनका कथानक
समझ ना आये उनको भी क्रिटिकली ऐक्लेडम्ड घोषित कर दिया जाता
है. ये जुमला ज्यादा पुराना नहीं है. इसका प्रयोग सन २००० के बाद
से होने लगा है.
फिल्म में संजीव कुमार और शर्मिला टैगोर ने अपने अपने केलिबर के
हिसाब से अभिनय किया है. कथानक अंग्रेजी फिल्मों की तरह कुछ
धीमा सा है जिसकी भारतीय दर्शकों को आदत नहीं पड़ी है अभी तक.
गुलज़ार की रचना है और कनु रॉय का संगीत. इसे भूपेंद्र ने गाया है.
फिल्म से पूर्व में आपको दो गीत हम सुनवा(कॉपी पेस्ट करवा)) चुके हैं.
गीत के बोल:
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
सुना है आबशारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
मचल के जब भी आँखों से
खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मज़ारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है
चरागों से मज़ारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
मचल के जब भी आँखों से
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
मचल के जब भी आँखों से
तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम ख़ाकसारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है
मगर हम ख़ाकसारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
सुना है आबशारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से
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Machal ke jab bhi aankhon se-Griha pravesh 1979
Artists: Sanjeev Kumar, Sharmila Tagore
4 comments:
किसी ने मुझे याद किया
Thanks
हाँ आपको ज़रूर याद करते हैं.
इससे स्लो फ़िल्में भी बहुत सी हैं, क्या बात करते हो आप
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