जब छाए कभी सावन की घटा-रेशमी रुमाल १९६१
यत्र तत्र बिखरी हुई है संगीत के खजाने में बस उसे खोज
कर आनंद लेने की ज़रूरत है.
राजा मेहँदी अली खान का लिखा हुआ गीत है जिसकी धुन
तैयार की है बाबुल ने.
गीत के बोल:
जब छाए कभी सावन की घटा
रो रो के न करना याद मुझे
ऐ जान-ए-तमन्ना गम तेरा
कर दे ना कही बरबाद मुझे
जब छाए कभी सावन की घटा
जो मस्त बहारें आई थी
वो रूठ गई उस गुलशन से
जो मस्त बहारें आई थी
वो रूठ गई उस गुलशन से
जिस गुलशन में दो दिन के लिए
किस्मत ने किया आबाद मुझे
जब छाए कभी सावन की घटा
वो राही हूँ पल भर के लिए
जो जुल्फ के सायें में ठहरा
वो राही हूँ पल भर के लिए
जो जुल्फ के सायें में ठहरा
अब ले के चली है दूर कहीं
ऐ इश्क तेरी बेदाद मुझे
जब छाए कभी सावन की घटा
ऐ याद-ए-सनम अब लौट भी जा
क्यूँ आ गई तू समझाने को
ऐ याद-ए-सनम अब लौट भी जा
क्यूँ आ गई तू समझाने को
मुझको मेरा गम काफ़ी है
तू और न कर नाशाद मुझे
जब छाए कभी सावन की घटा
रो रो के न करना याद मुझे
ऐ जान-ए-तमन्ना गम तेरा
कर दे ना कही बरबाद मुझे
जब छाए कभी सावन की घटा
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Jab chhaye kabhi sawan ki ghata-Reshmi Rumal 1961
Artists: Manoj Kumar, Shakeela
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