May 5, 2018

यही फ़िक़्र है शाम पिछले सवेरे-लाल हवेली १९४४

कवि क्या कहना चाहता है इसे समझ पाने के लिए कवि जैसा
दिमाग चाहिए या कॉमन सेन्स चाहिए ये समझ नहीं पड़ा. एक
तो लिखने वाला क्या लिखता है और दिखाने वाला क्या दिखाता
है इसमें भी अंतर आ जाता है. मसलन- दूर से देखा तो अंडे उबल
रहे थे पास जा के देखा तो गंजे उछल रहे थे,

हेरा फेरी का मतलब अलग है, हेर फेर का भी वही मतलब होता
है. हेरा फेरा का मतलब भी यही समझ लिया जाए. इसे ह्यूमर
वाले सेन्स में लिया गया है.



गीत के बोल:

यही फ़िक़्र है शाम पिछले सवेरे
यही फ़िक़्र है शाम पिछले सवेरे
हसीनों की गलियों के हों हेरे-फेरे
हसीनों की गलियों के हों हेरे-फेरे
यही फ़िक़्र है शाम पिछले सवेरे

मेरे जज़्ब-ए-दिल की कशिश देख लेना
मेरे जज़्ब-ए-दिल की कशिश देख लेना
के ख़ुद ही चले आयेंगे पास मेरे
के ख़ुद ही चले आयेंगे पास मेरे
यही फ़िक़्र है शाम पिछले सवेरे

ज़मीं पर उतर आया चाँद आसमाँ से
ज़मीं पर उतर आया चाँद आसमाँ से
ग़रीबों के घर आज होंगे बसेरे
ग़रीबों के घर आज होंगे बसेरे
यही फ़िक़्र है शाम पिछले सवेरे

कोई बात पूछे न पूछे हमें क्या
कोई बात पूछे न पूछे हमें क्या
दर-ए-यार पर अब लगाये हैं डेरे
दर-ए-यार पर अब लगाये हैं डेरे

यही फ़िक़्र है शाम पिछले सवेरे
हसीनों की गलियों के हों हेरे-फेरे
हसीनों की गलियों के हों हेरे-फेरे
………………………………………………………………
Yahi fikr hai-Lal aveli 1944

Artist: Surendra, Yakub

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