कोई दिन ज़िन्दगी के-गुंजन १९४८
फ़िल्में ऐसी हैं जिनका संगीत खूब लोकप्रिय हुआ और
बजा. ये भी एक ऐसा वर्ष रहा जिसमें पुरानी और नयी
पीढ़ी के संगीतकारों की बराबर सी मौजूदगी रही..
सुनते हैं एक कम जाने पहचाने संगीतकार की बढ़िया
धुन मुकेश की आवाज़ में.
गीत सरस्वती कुमार दीपक रचित है.
गीत के बोल:
कोई दिन ज़िन्दगी के गुनगुना कर ही बिताता है
कोई दिन ज़िन्दगी के गुनगुना कर ही बिताता है
कोई पा कर के खोता है कोई खो कर के पाता है
हमारी ज़िन्दगी भी क्या कभी हँसना कभी रोना
हमारी ज़िन्दगी भी क्या कभी हँसना कभी रोना
जिसे हम अपना कहते हैं वो हमसे दूर जाता है
उम्मीदें लुट गईं जिसकी तसव्वुर छिन गया जिसका
उम्मीदें लुट गईं जिसकी तसव्वुर छिन गया जिसका
वो कश्ती आप ही गहरे समन्दर में डुबाता है
अगर दिल हो गया वीरां करूँगा मौत से उल्फ़त
अगर दिल हो गया वीरां करूँगा मौत से उल्फ़त
किसी बदहाल पर अब कौन दो आँसू बहाता है
किसी के चैन से आराम से क्या वास्ता अपना
किसी के चैन से आराम से क्या वास्ता अपना
न कोई साथ देता है न कोई पास आता है
कोई दिन ज़िन्दगी के गुनगुना कर ही बिताता है
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Koi din zindagi ke-Gunjan 1948
Artist: Aap dhoondho
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