Jul 13, 2018

हमें मार चला ये ख़्याल ये गम-आरजू १९५०

एक कहावत है-न घर के न घाट के. घाट का अर्थ
घर से बाहर की दुनिया से है. घाट का अर्थ पनघट
हात और नैन मटक्का से तो कतई नहीं है. हिंदी
फिल्मों के कंटेक्स्ट में घाट और पनघट का मतलब
कोई गोरी मटकी भर के पानी लाती है. गोरी ही
लाती है काली नहीं. युवा ही लाती है, प्रौढ़ नहीं.
एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं. अपनी सुविधा का
अर्थ समझने की स्वतंत्रता सबको है जब तक कवि
सन्दर्भ सहित भावार्थ ना समझाए.

सुनते हैं अनिल बिश्वास का गाया हुआ आरज़ू का
ये चर्चित गीत. इसे हास्य अभिनेता गोप परदे पर
गा रहे हैं. गोप के अभिनय के पहलू हमें १९५६ की
फिल्म चोरी चोरी में दिखाई दिए. वे एक संजीदा
कलाकार थे.

मजरूह सुल्तानपुरी के बोल हैं और अनिल बिश्वास
का संगीत. गीत में हास्य का पुट है मगर ये बहुत
उम्दा संगीत का टुकड़ा है.


गीत के बोल:

हमें मार चला ये ख़्याल ये गम
न इधर के रहे न उधर के रहे
किसी और का हो गया कोई तो हम
न इधर के रहे न उधर के रहे

हम ज़हर तो खा लेते उन बिन
ख़ंजर भी चला लेते लेकिन
न हो उनको ख़बर तो हाय सितम
न इधर के रहे न उधर के रहे
न इधर के रहे न उधर के रहे
न हो उनको ख़बर तो हाय सितम
न इधर के रहे न उधर के रहे

है ये प्यार का फंदा गर्दन में
जीते न बने मरते न बने
हाँ जीते न बने मरते न बने
यूँ ही बीच गले में अटका है दम
न इधर के रहे न उधर के रहे
न इधर के रहे न उधर के रहे
यूँ ही बीच गले में अटका है दम
न इधर के रहे न उधर के रहे

हमें मार चला ये ख़्याल ये गम
न इधर के रहे न उधर के रहे
हमें मार चला ये ख़्याल ये गम
……………………………………….
Hamen maar chala ye khyal ye gham-Arzoo 1950

Artist: Gope

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