घबरा के जो हम सर को-महल १९४९
है, किसी शब्द को लेकर या फ़िर किसी भाव को ले कर.
सन १९४९ की फिल्म महल में कई खूबसूरत गीत हैं. एक
और सुनते हैं आज.
गीत में सर को टकराने की बात की गयी है. सबसे पहला
विकल्प दिमाग में आता है-पत्थर. अंडरस्टुड जैसी चीज़ है
ये तो. इसमें सोचना क्या. मेरे जैसे कई संगीतप्रेमी ऐसा ही
सोचते हैं. मगर, सन्दर्भ सहित भावाख्या करने वाले इसके
अलग अलग मायने निकाल सकते हैं. दूसरा विकल्प फिल्मों
के ही अनुसार जो हो सकता है वो है-अपना सर किसी दूसरे
के सर पे दे मारना. ये ढिशुम ढिशुम वाली फिल्मों में हम
अक्सर देखते हैं.
बहरहाल जो भी हो, इन सब से इस गीत की खूस्ब्सूरती कम
ना होगी. नक्शब के लिखे गीत को गाया है राजकुमारी दुबे
ने. इसे विजयलक्ष्मी नाम की अभिनेत्री पर फिल्माया गया है.
गीत के बोल:
घबरा के जो हम सर को टकराएं तो अच्छा हो
घबरा के जो हम सर को टकराएं तो अच्छा हो
इस जीने में सौ दुख हैं
इस जीने में सौ दुख हैं मर जाएं तो अच्छा हो
मर जाएं तो अच्छा हो
घबरा के जो हम सर को टकराएं तो अच्छा हो
दिल डूबने का मंज़र वो भी तो ज़रा देखें
दिल डूबने का मंज़र वो भी तो ज़रा देखें
आँसू मेरी आँखों में
आँसू मेरी आँखों में भर आएं तो अच्छा हो
घबरा के जो हम सर को टकराएं तो अच्छा हो
जो हम पे गुज़रनी है
जो हम पे गुज़रनी है इक बार गुज़र जाये
जो हम पे गुज़रनी है इक बार गुज़र जाये
वो कितने सितमगर है खुल जाए तो अच्छा हो
घबरा के जो हम सर को टकराएं तो अच्छा हो
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Ghabra ke jo ham-Mahal 1949
Artist: Vijaylaxmi
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