तुम दूर जाओगे कैसे-गुस्ताखी माफ १९६९
और है कि उनके कई मधुर गीत प्रसिद्धि के मामले में पीछे रह
गए. हर गाना ठाकुर जरनैल सिंह फिल्म के गाने-हम तेरे बिन
जी ना सकेंगे सनम जैसा नहीं होता जो कि फिल्म का अता पता
मालूम ना होने के बावजूद आम जनता को बेहद पसंद आया और
आज भी इस गाने के मुरीद मौजूद हैं.
यू ट्यूब के आविष्कार को पूरे १४ वर्ष हो चुके हैं. इसके पहले तक
फिल्मों को देख पाना आसान नहीं था. आज तो कम्पनियाँ खुद
अपनी फ़िल्में यू ट्यूब पर डाल रही हैं और जनता को आसानी से
फ़िल्में देखने को मिल जाती हैं. हमारे यहाँ इन्टरनेट बैलगाडी की
गति से थोडा ऊपर उठ कर साइकिल और मोपेड पर आ चुका है.
बफेलो और बफरिंग अभी कुछ समय और साथ साथ चलेंगे.
एक फिल्म जिसे देख पाना दुर्लभ अनुभव था-संजीव कुमार और
तनूजा अभिनीत गुस्ताखी माफ. इसमें एक दो कर्णप्रिय गीत हैं.
आपको मैं पहले वो सुनवाऊंगा जिसे मैंने पहले पहल सुना था काफी
साल पहले. नक्श लायलपुरी के बोल हैं. लायलपुर के मिटटी पकड़
पहलवान हैं वे. साहित्य के एलेमेंट्स को जिंदा रखने वाले कुछ
चुनिन्दा फ़िल्मी गीतकारों में गिने जाते हैं.
इस गीत में तनूजा अपनी नपी तुली अभिनय क्षमता में जो भी कुछ
संभव है कर रही हैं. उनके चेहरे की बनावट ही ऐसी है/थी कि उनके
लिए ज्यादा उतार चढ़ाव ला पाना या भाव भंगिमाएं बना पाना आसान
ना था. हालांकि इस मामले में उन्होंने काफी सुधार किया और मेरे
हिसाब से सन १९७२ की फिल्म दो चोर में उनका अभिनय बेहतर
दिखाई दिया. कैरियर के उत्तरार्ध में उनका अभिनय बेहतर नज़र
आता है और उसकी वजह चेहरे पर उम्र का असर होना रहा जिससे
उन्हें भाव उभारने में काफी सहूलियत मिली. बूढा कोई नहीं होना
चाहता. आयु की ये अवस्था जीवनचक्र का हिस्सा है जिससे कोई भी
अछूता नहीं रहा. सच यही है. उम्र के इस पड़ाव में जैसा कि सबके
साथ होता आया है और आगे होता रहेगा-उन्हें चरित्र भूमिकाएं ही मिलीं.
अभिनय में निरंतरता बनाये रखना काफी दुष्कर कार्य होता है फिल्मों
में काम करते वक्त. फिल्म के शॉट्स एक सीक्वेंस में नहीं लिए जाते.
कभी फिल्म का आखिरी शॉट पहले फिल्म लिया जाता है. कभी कोई
गीत को फिल्माने में १० दिन लग जाते हैं. मान लीजिए कोई रेगिस्तान
का दृश्य है और गीत के पहले अंतरे में नायक का चेहरा स्वस्थ सा
लग रहा है और गीत के तीसरे अंतरे तक जुकामी सा दिखाई देने लगे,
इसकी वजह गीत के २ दिन के फिल्मांकन के बाद नायक को जुकाम
हो जाना भी होता था. ये भावान्तर आपको कुशल निर्देशकों के कार्य में
कम मिलेगा.
इस गीत की शुरुआत नायिका के चहरे के क्लोज़ अप शॉट के साथ
शुरू होती है. जैसे जैसे कैमरा दूर होता जाता है भाव धुधले से होने
लग पढते हैं. जब नायिका अंतरा गाना शुरू करती है तो झाडियों में
से प्रकट होने के साथ उसके चेहरे पर आते हुए दुखद तटस्थता के
भाव धीमे धीमे नायक के कंधे से चिपटते ही खामोश राहत में
तब्दील होने लगते है. हालांकि किंचित सा संदेह अभी भी नायिका के
चेहरे पर है. नींदें चुरा लेंगे, ख्वाबों में घुल जायेंगे जैसे सिहराने वाले
बोल सुन कर नायक एक बारगी चौंक जाता है और नायिका की ओर
कुतूहल से देखता है. नायक बेचैन सा हो कर चल देता है और नायिका
प्रश्नवाचक दृष्टि घुमाते हुए पीछे चलते हुए संदेह में भय घोल कर दूसरा
अंतरा शुरू करती है. फिर होता है भावनात्मक आक्रमण और पलकों पर
अश्क बन कर लहराने और दामन में सो जाने की बात. इससे नायक का
ह्रदय थोडा द्रवित होता है और वो नायिका को गले से लगा लेता है.
एक निश्चित अलगाव वाले विचार से क्षण भर ही सही मुक्त हो कर नायक
नायिका के आलिंगन को स्वीकारता है फिर दूर छिटक जाता है.
वैचारिक द्वन्द में आदमी तथ्य भूल जाता है तब उसे कुछ बातें याद
दिलाना पढ़ती हैं. तीसरे अंतरे में ऐसा ही कुछ हो रहा है जिसमें नायिका
नायक की नम हुई आँखों और कातरता को भांपते हुए उसे जिंदगी की
कसम देती है और उससे पहल करने का निवेदन करती है. सरल शब्दों में
इससे खूबसूरत तरीका नहीं मिल सकता जब कहा जाए-हम दूर तक
आ गये तुम भी चलो दो कदम. प्रेम में प्रतिबद्धता का चरम है यह.
परामर्शपूर्वक निवेदन के प्रत्युत्तर में अपेक्षा है सार्थक पहल की.
गीत प्रश्न में ही खत्म हो जाता है. दो कदम चलने की प्रक्रिया की
पूर्णता है. यह एक इकाई है जिसमें दोनों पांव बराबर दूरी तय करते हैं.
संजीव कुमार को नैसर्गिक कलाकार कहा जाता है. उन्हें रीटेक की
ज़रूरत ना के बराबर पड़ती थी. गीत का प्रभाव उनके चहरे पर
कशमकश खत्म होने के बाद आने वाली तड़प के फॉर्म में आ ही
जाता है. इस गीत का फिल्मांकन बेहतरीन है. किसी भी चीज़ का
ओवरडोज नहीं है. इसी गीत की धुन को संगीतकार ने सन १९८५
की फिल्म अम्बर में पुनः प्रयोग किया है और किशोर कुमार से वो
गीत गवाया है जिसे हम बाद में सुनेंगे.
गुस्ताखी माफ फिल्म के फोटोग्राफी डायरेक्टर हैं राजकुमार भाखरी,
कैमरामेन एस एल शर्मा और उनके सहायक द्वारका और फिल्म के
एडिटर श्याम. इस गीत को नक्श लायलपुरी ने लिखा है और इस
गीत के संगीतकार हैं सपन-जगमोहन.
भूल चूक लेनी देनी
गीत के बोल:
तुम दूर जाओगे कैसे दामन बचाओगे कैसे
हमें तुम भुला ना सकोगे
तुम दूर जाओगे कैसे दामन बचाओगे कैसे
हमें तुम भुला ना सकोगे
तुम दूर जाओगे कैसे
जितना भुलाओगे तुम उतना ही याद आयंगे
नींदें चुरा लेंगे हम ख्वाबों में घुल जायेंगे
ख्वाबों में घुल जायेंगे तड़पेंगे तड़पायेंगे
हो ओ ओ ओ
तुम दूर जाओगे कैसे दामन बचाओगे कैसे
हमें तुम भुला ना सकोगे
तुम दूर जाओगे कैसे
दिल की लगी बन के हम दिल में सुलग जायेंगे
पलकों पे आ कर कभी अश्कों में लहरायेंगे
अश्कों में लहरायेंगे दामन में सो जायेंगे
हो ओ ओ ओ
तुम दूर जाओगे कैसे दामन बचाओगे कैसे
हमें तुम भुला ना सकोगे
तुम दूर जाओगे कैसे
खुद पे ना ढाओ सितम तुम्हें जिंदगी की कसम
हम दूर तक आ गये तुम भी चलो दो कदम
तुम भी चलो दो कदम मेरे सनम कम से कम
हो ओ ओ ओ
तुम दूर जाओगे कैसे दामन बचाओगे कैसे
हमें तुम भुला ना सकोगे
तुम दूर जाओगे कैसे दामन बचाओगे कैसे
हमें तुम भुला ना सकोगे
तुम दूर जाओगे कैसे
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Tum door jaoge kaise-Gustakhi Maaf 1969
Artists: Tanuja, Sanjeev Kumar
3 comments:
शानदार आलेख.
तथ्यपूर्ण लेख आलोचना के पुट समेत है.
dhanyawaad
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