आई बहारों की शाम-वापस १९६९
सा ही सही दुःख का भाव भी है. इसे आप चाहें तठस्थ
भाव वाला गीत भी कह सकते हैं. ऐसे गीत फिल्म की
सिचुएशन के हिसाब से रचे जाते हैं मगर लोकप्रिय भी
हो जाया करते हैं.
प्रस्तुत गीत उतना लोकप्रिय नहीं मगर लक्ष्मी प्यारे ने
रफ़ी के लिए जितने भी क्वालिटी गाने रचे हैं उनमें से
एक है. मजरूह सुल्तानपुरी इसके रचनाकार हैं और
संगीतकार का नाम हम आपको बतला ही चुके हैं.
गीत के बोल:
आई बहारों की शाम
आई बहारों की शाम
क्या जाने फिर किसके नाम
ठंडी हवा भीगी फिज़ा
लायी है फिर किसका सलाम
आई बहारों की शाम
क्या जाने फिर किसके नाम
आई बहारों की शाम
सितारों ने बाँधा गगन पर
समां जैसे खिलते गुलों का
सितारों ने बाँधा गगन पर
समां जैसे खिलते गुलों का
सूनसान सपनों भरी वादियों में
चांदनी से सजे रास्तों का
घटा ने किया इंतज़ाम
क्या जाने फिर किसके नाम
आई बहारों की शाम
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
मैं गाता हूँ किस दिलरुबा की
मोहब्बत के रंगीन तराने
मैं गाता हूँ किस दिलरुबा की
मोहब्बत के रंगीन तराने
कौन आनेवाला है तन्हाइयों में
चुपके चुपके ये दिल में ना जाने
धडकता है किसका पयाम
क्या जाने फिर किसके नाम
आई बहारों की शाम
क्या जाने फिर किसके नाम
ठंडी हवा भीगी फिज़ा
लायी है फिर किसका सलाम
आई बहारों की शाम
क्या जाने फिर किसके नाम
आई बहारों की शाम
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Aayi baharon ki shaam-Wapas 1969
Artist: Ajay, Alka
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