हँस के न तीर चलाना-बेक़सूर १९५०
माना जाता है. ये जून पुराने संगीत रसिकों द्वारा तय
किया कट ऑफ है. वर्ष १९५० के गानों को हम चाहें
तो मान सकते हैं विंटेज युग के गीत.
सुनते हैं लता और रफ़ी का गाया हुआ एहसान रिज़वी
का लिखा गीत जिसकी तर्ज़ बनाई है हंसराज बहल ने.
स्टेज कार्यक्रम में नायिका नाच रही है जिसकी भाव
भंगिमाएं देख के दीर्घ में बैठा नायक कुढ़ रहा है.
गीत के बोल:
हँस के न तीर चलाना
दिल ख़ुद ही बनेगा निशाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
हँस के न तीर चलाना
दिल ख़ुद ही बनेगा निशाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
गोरी इतना न हम पे सितम ढाना
रह रह के याद सताये
रह रह के याद सताये
गोरे गालों पे
ओ गोरे गालों पे मन ललचाये
गोरे गालों पे मन ललचाये
कुछ अपनी निशानी दिये जाना
दिल ख़ुद ही बनेगा निशाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
गोरी इतना न हम पे सितम ढाना
जो देखे वो ही ललचाये
जो देखे वो ही ललचाये
कोई किस किस से आँख चुराये
कोई किस किस से आँख चुराये
जिसे देखो पुकारे चली आना
दिल ख़ुद ही बनेगा निशाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
मर जायेंगे हम घबरा के
मर जायेंगे हम घबरा के
मुँह छुपाना ना
ओ मुँह छुपाना ना घूँघट उठा का
मुँह छुपाना ना घूँघट उठा का
गोरी हमसे न तुम शरमाना
दिल ख़ुद ही बनेगा निशाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
गोरी इतना न हम पे सितम ढाना
पछताउँ मैं प्रीत लगा के
पछताउँ मैं प्रीत लगा के
घबराती हूँ आँख मिलाते
घबराती हूँ आँख मिलाते
मेरा भोला सा मन न दुखाना
दिल ख़ुद ही बनेगा निशाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
हँस के न तीर चलाना
दिल ख़ुद ही बनेगा निशाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
तुम इतना न हम पे सितम ढाना
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Hans ken a teer chalana-Beqasoor 1950
Artists: Madhubala, Ajit
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