Feb 13, 2020

ये फासले ये दूरियां-ज़मीन आसमान १९८४

कुछ चीज़ें जीवन में नहीं मिला करतीं जैसे कि
ज़मीन और आसमान. रेल की पटरियां भी साथ
साथ निश्चित दूरी पर रहती हैं मगर उनका मेल
नहीं होता. तेल और पानी का संगम नहीं होता
मगर इमल्शन बन जाता है जो मलहम की शक्ल
ले लेता है. हो सकता है ज़मीन आसमान भी गर
मिलते तो मरहम का काम करते.

अंधे के हाथ बटेर लगना या किसी फटीचर को
अमीर बाप की लौंडिया मिल जाए तो उसे किस्मत
का चमत्कार या करिश्मा कह लेते हैं. अपवाद
कुछ हो सकते हैं मगर सामान्यतः असम्भव सी
लगने वाली चीज़ें उपलब्ध नहीं होती. फिल्मों में
सब कुछ उल्टा पुल्टा हो जाता है मगर आम
आदमी के जीवन में न्यूटन का सेब उसके बुझे
अरमानों की तरह ज़मीन पर ही गिरता है.

सुनते हैं अनजान की एक रचना लता मंगेशकर
की सुरीली आवाज़ में जिसकी धुन तैयार की है
राहुल देव बर्मन ने. वीडियो गीत में सिर्फ एक
अन्तर है और वो काफी है आपको अभिनेत्री रेखा
के अभिनय कौशल से परिचित करने के लिए.



गीत के बोल:

ये फासले ये दूरियां कैसी हैं ये मजबूरियां
मिल के भी क्यूँ आखिर यहाँ
ज़मीन आसमान नहीं मिलते
ये फासले ये दूरियां कैसी हैं ये मजबूरियां
मिल के भी क्यूँ आखिर यहाँ
ज़मीन आसमान नहीं मिलते

जाने क्या है ये बेबसी
बस ना किसी का चले
हो ओ ओ सदियों से बदले नहीं
कुदरत के फैसले
क्यूँ है जुदा दोनों जहाँ
मिल के भी क्यूँ आखिर यहाँ
ज़मीन आसमान नहीं मिलते

ये फासले ये दूरियां कैसी हैं ये मजबूरियां
मिल के भी क्यूँ आखिर यहाँ
ज़मीन आसमान नहीं मिलते

आँचल में फूल क्या खिले
होंठों की हंसी छीन ले
हो ओ ओ कैसे हो के लौटे जुदा
शमा ये जलती रहे
तनहा नहीं क्यूँ ये जिस्म जान
मिल के भी क्यूँ आखिर यहाँ
ज़मीन आसमान नहीं मिलते

ये फासले ये दूरियां कैसी हैं ये मजबूरियां
मिल के भी क्यूँ आखिर यहाँ
ज़मीन आसमान नहीं मिलते

आहों में अगर हो असर
मुमकिन है फिर क्या नहीं
हो ओ ओ चूमे ज़मीन के कदम
ये आसमान भी कहीं
एक दिन मिले दोनों जहाँ
कैसे कहे कोई यहाँ
ज़मीन आसमान नहीं मिलते

ये फासले ये दूरियां कैसी हैं ये मजबूरियां
मिल के भी क्यूँ आखिर यहाँ
ज़मीन आसमान नहीं मिलते
……………………………………………..
Ye faasle ye dooriyan-Zameen Aasman 1984

Artists: Rekha

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