May 22, 2020

ऐसा कोई जिंदगी में आये-दोस्ती २००५

बॉलीवुड में एक नाम से कई फ़िल्में मौजूद हैं. हाल में
आई फिल्म बागी जिसके नाम के साथ १-२-३ लगा हुआ
है सीक्वल होने की वजह से, पहले भी बनाई जा चुकी है.
इससे पूर्व सलमान खान वाली फिल्म आई थी. श्वेत श्याम
युग में भी एक बागी फिल्म मौजूद है. गोलमाल नाम से
भी काफी फ़िल्में बन गई हैं. सर्वप्रथम तो अमोल पालेकर
वाली ही है.

कुछ फ़िल्में तो ऐसी भी हैं जिनके नामों पर शायद ही कोई
दूसरी फिल्म बनाने की हिम्मत करे जैसे कि अलबर्ट पिंटो
को गुस्सा क्यूँ आता है, पॉपकॉर्न खाओ मस्त हो जाओ, कभी
हाँ कभी ना, राजा रानी को चाहिए पसीना, एक रुका हुआ
फैसला, प्राण जाये पर वचन न जाये, अँधेरी रात में दिया
तेरे हाथ में इत्यादि.

कोई कहता है छोटे नाम वाली फ़िल्में ज़्यादा पोपुलर होती
हैं. इतिहास गवाह है कि नाम वाम में कुछ नहीं रखा वो
तो कब क्या हिट हो जाये समय की चाल के साथ इसे
अधिकाँश निर्देशक स्वीकार करते हैं, समझ के बाहर वाली
चीज़ है. अगर छोटे नाम वाला फार्मूला चलता तो शोले के
बाद शान फिल्म हिट होना चाहिए थी. रमेश सिप्पी शोले
को ले कर तो ये कह चुके हैं-वो बन गई तो बन गई.
ऐसी फ़िल्में कभी कभार ही बना करती हैं. उन्होंने बतलाया
कैसे फिल्म के कथानक से ले कर स्टारकास्ट और तकनीकी
टीम और गीत संगीत तक सब कुछ उम्दा सा होता चला.

लेख टंडन द्वारा निर्देशित और राजश्री प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित
फिल्म दुल्हन वही जो पिया मन भाये बेहद लोकप्रिय और
सफल फिल्म है अपने समय की. मिर्ज़ा ब्रदर्स की ९० के
दशक की राजू बन गया जेंटलमैन भी अपने समय की एक
सफल और जनता की प्रिय फिल्म है.

ऊपर वर्णित कई नाम तो सफल फिल्मों के हैं. इनके साथ
कुछ ऑफ बीट फिल्मों के नाम भी हमने ले लिए हैं. ये
किसी समय ऑफ बीट लगती थीं मगर आज के कथानकों
से तुलना की जाये तो मुख्य धारा के सिनेमा की फ़िल्में
ही प्रतीत होंगी. ऑफ बीट इसलिए कि उनमें फिल्मों के
रेगुलर मसालों में से अधिकाँश नदारद मिलते हैं.

वैसे बीट शब्द फ़िल्मी जनता को इतना पसंद आया कि
चिड़िया की बीट, कबूतर की बीट भी अब सेल्युलॉइड फोर्मेट
में उपलब्ध है. संगीत वाली जो बीट है उसे डी जे और
रिमिक्स वालों ने हार्ट बीट बढ़ाने का सामान बना दिया है.
बारात निकल रही हो किसी सड़क या गली से और मकानों
की खिड़कियाँ न थर्राएँ तो ये तो बेइज्जती वाली बात हुई
डी जे वालों के लिए.

सन २००५ में एक फिल्म आई दोस्ती. ये शब्द शायद १९६४
के बार सुनाई दिया किसी फिल्म के शीर्षक के तौर पर. इस
फिल्म से एक गीत सुनते हैं समीर का लिखा हुआ और
नदीम श्रवण द्वारा संगीतबद्ध. अभिजीत और अलका याग्निक
ने इसे गाया है.



गीत के बोल:

ऐसा कोई ज़िन्दगी में आये
जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाये
ऐसा कोई ज़िन्दगी में आये
जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाये

थोड़े खुशियाँ हों थोड़े आँसू हों
और ज़रा ज़रा पे मुस्कुराये
ऐसा कोई ज़िन्दगी में आये
जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाये
ऐसा कोई ज़िन्दगी में आये
जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाये
थोड़े खुशियाँ हों थोड़े आँसू हों
और ज़रा ज़रा पे मुस्कुराये

ऐसा कोई ज़िन्दगी में आये
जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाये

दिलों जान से जो मुझपे मरे
सिर्फ मुझसे मोहब्बत करे
मेरे ख्वाबों में खोया रहे
मेरे कांधों पे सोया रहे
मेरे लिए दुनिया भुलाये
मेरे दर्द-ओ-गम भी उठाए

ऐसा कोई ज़िन्दगी में आये
जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाये

लम्हा लम्हा उमर बाँट ले
मेरी तन्हाईयाँ काट ले
हर घड़ी बस मेरा नाम ले
लड़खड़ाऊँ जो मैं थाम ले
मेरे सारे सपने सजाये
मेरी पलकों में घर बनाये

ऐसा कोई ज़िन्दगी में आये
जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाये
थोड़े खुशियाँ हों थोड़े आँसू हों
और ज़रा ज़रा पे मुस्कुराये
………………………………………..
Aisa koi zindagi mein aaye-Dosti 2005

Artists: Akshay Kumar, Kareena Kapoor

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