Mar 20, 2009

समय के बंधन से मुक्त गाने १ दिल ढूंढता है फ़िर -मौसम १९७५

इसको आज भी सुनो तो नया नया सा लगता है। समय के
बंधन से मुक्त गानों की यही खूबी होती है कि वे कभी पुराने
नहीं पढ़ते । हमेशा आपको आनंदित करते हैं। ऐसा ही एक
गाना है फ़िल्म मौसम से । गायक हैं लता और भूपेंद्र। बोल
गुलज़ार के हैं और संगीत मदन मोहन का। हीरो अपने अतीत
को खोज रहा है और उसका सामना सुनहरी यादों से होता है।

गुलज़ार ने इसके पहले फिल्म कोशिश के लिए मदन मोहन की
सांगीतिक सेवाएँ ली थीं।



गाने के बोल:

दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन

जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को
आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए

दिल ढूँढता है
हो, दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
दिल ढूँढता है फिर वही

या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें
या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए

दिल ढूँढता है
हो, दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
दिल ढूँढता है फिर वही

बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें
वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिये हुए

दिल ढूँढता है
हो, दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
दिल ढूँढता है फिर वही
..................................................................
Dil dhoondhta hai phir wahi-Mausam 1975

Artists: Sanjeev Kumar, Sharmila Tagore

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP