जिंदा हूँ इस तरह-आग १९४८
कि चर्चित हुए और पसंद किये गए। इन गीतों में एक है मुकेश का
गाया हुआ दर्द भरा गीत जो बेहज़ाद लखनवी का लिखा हुआ है।
इस गीत की धुन बनायीं है राम गांगुली ने। गीत फिल्माया गया है
प्रेमनाथ और कामिनी कौशल पर।
गीत के बोल:
जिंदा हूँ इस तरह की ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं
जलता हुआ दिया हूँ मगर रौशनी नहीं
जिंदा हूँ इस तरह की ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं
जलता हुआ दिया हूँ मगर रौशनी नहीं
वो मुद्दतें हुयीं हैं किसी से जुदा हुए
वो मुद्दतें हुयीं हैं किसी से जुदा हुए
लेकिन ये दिल की आग अभी तक बुझी नहीं
जिंदा हूँ इस तरह की ग़म-ए
आने को आ चूका था किनारा सामने
आने को आ चूका था किनारा सामने
खुद उसके पास ही मेरी नैय्या गयी नहीं
जिंदा हूँ इस तरह की ग़म-ए......
होंठों के पास आये हंसी, क्या मजाल है
होंठों के पास आये हंसी, क्या मजाल है
दिल का मुआमला है कोई दिल्लगी नहीं
जिंदा हूँ इस तरह की ग़म-ए.....
ये चाँद ये हवा ये फिजा सब हैं मादमा
ये चाँद ये हवा ये फिजा सब हैं मादमा
जब तू नहीं तो इन में कोई दिलकशी नहीं
जिंदा हूँ इस तरह की ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं
जलता हुआ दिया हूँ मगर रौशनी नहीं
जिंदा हूँ इस तरह की ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं
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Jinda hoon is tarah ke-Aag 1948
Artists: Premnath, Kamini Kaushal
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