May 16, 2009

"सुबह न आई-चा चा चा" १९६४ की फिर से खोज

ख़ुशी जिसने खोजी, वो धन ले के लौटा
हंसी जिसने खोजी, चमन ले के लौटा
मगर प्यार को खोजने जो चला वो ,
न तन लेके लौटा, न मन लेके लौटा


नीरज की लिखी एक अमर कृति । इसको अमर बनाने में
इकबाल कुरैशी और मोहम्मद रफी का बराबर योगदान है।
"आ जा " इन शब्दों को रफी ने जिस खूबी से गाया है तरह तरह
के गीतों में , वो बेमिसाल है। रफी की भावाभिव्यक्ति का एक
शानदार नमूना है ये गाना।

गाने की शुरुआत में और अंत में घंटियों की आवाज़ है जो इस
गाने को ईश्वरीय स्पर्श देती है। बाकी के साज़ जो इस्तेमाल हुए
हैं इस गाने में, वो भी लाजवाब हैं। सारे साजों के बीच जो रफी
और तबले की जुगलबंदी चलती है वो श्रोता को बांध के रखती है।

जिन लोगों का ये मानना है की हेलन गंभीर किस्म के रोल के लिए
उपयुक्त हिरोइन नहीं है, और जिन्होंने हेलन के अच्छे कलाकार होने
की धारणा फिल्म "लहू के दो रंग" देख के बनायीं हो, उन फिल्म प्रेमियों
के लिए है ये विडियो।

गाने में हीरो चंद्रशेखर हैं जो अपने खोये प्यार की तलाश में अपनी
भावनाएं रफी के गाने के माध्यम से प्रकट कर रहे हैं । ना उम्मीदी
के भंवर में उलझे विचार गाने की शकल में प्रकट हो रहे हैं। हिंदी
फिल्मों में अधिकतर गीत सिचुअशन को ध्यान में रख के ही लिखे
जाते हैं। नीरज ने एक बहुत ही बढ़िया प्रयास किया है। नीरज जिनको
हमारे हिंदी फिल्म संगीत प्रेमी केवल एस डी बर्मन के संगीत बद्ध किये
गीतों से ही याद किया करते हैं उन्होंने और भी कई अमर कृतियाँ दी हैं
फिल्म जगत को, जिसका एक उदहारण है- "स्वप्न झरे फूल से" फिल्म
'नयी उम्र की नयी फसल' में जिसकी संगीत रचना संगीतकार रोशन ने
की थी ।





गीत के बोल:
ख़ुशी जिसने खोजी, वो धन ले के लौटा
हंसी जिसने खोजी, चमन ले के लौटा
मगर प्यार को खोजने जो चला वो,
न तन ले के लौटा, न मन ले के लौटा

सुबह ना आई शाम ना आई
सुबह ना आई शाम ना आई
जिस दिन तेरी याद ना आई
याद ना आई
सुबह ना आई शाम ना आई

कैसी लगन लगी ये तुझसे
कैसी लगन ये लगी
हंसी खो गई खुशी खो गई
आंसू तक सब रहन हो गए
अर्थी तक नीलाम हो गई
अर्थी तक नीलाम हो गई
दुनिये ने दुश्मनी निभाई
याद ना आई

सुबह ना आई शाम ना आई

तुम मिल जाते तो हो जाती
पूरी अपनी राम कहानी
खंडहर ताजमहल बन जाता
गंगाजल आँखों का पानी
साँसों ने हथकड़ी लगाई
याद ना आई

सुबह ना आई शाम ना आई

जैसे भी हो तुम आ जाओ
आग लगी है तन और मन में
आग लगी है तन और मन में
एक तार की दूरी है
एक तार की दूरी है
बस दामन और कफ़न में
हुई मौत के संग सगाई
याद ना आई
आ जाओ आ जाओ आ जाओ
..........................................................................
Subah na aayi-Cha cha cha 1964

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