समय के बंधन से मुक्त गाने २ - ए दिल-ए-नादां १९८३
फिल्म संगीत खजाने का. कमाल अमरोही के कमाल के साथ
जां निसार अख्तर के बोल, खय्याम का संगीत और लता की
आवाज़ का जादू महसूस करना हो आप भी किसी धोरे पर
पहुँच जाएँ रात को और इस गाने को सुनना शुरू कर दें. गीत
में वो प्रभाव है- जैसे नायिका रेत के धोरों पर अपने अक्स को
निहार रही है वैसे ही आप भी कुछ ढूँढना शुरू कर देंगे. ये अक्स
उसके मन का है जो सारे बंधनों को तोड़ के उन्मुक्त पंछी की
तरह प्रकृति को महसूस करना चाहता है, खुल के चहचहाना
चाहता है.
संतूर और सारंगी ने इस गीत को जो प्लेटफोर्म मुहैया कराया है
वो अनूठा और अलौकिक है. ऐसे गीत दशक में इक्के दुक्के ही
बनते हैं. ऐसी प्रेरणाएँ विशेष अवस्था में ईश्वरीय ही होती है. इसके
फिल्मांकन के लिए भी प्रेरणा विशेष की व्यवस्था की गयी लगती
है. इससे बेहतर फिल्मांकन की कल्पना करना मुश्किल है. सादगी
के साथ वो ठंडक का अहसास कुदरत के हसीं नज़ारे जैसा बन
गया है. सेल्युलोइड के ऐसे टुकड़ों को तो सहेज के रखने का
मन करता है.
दिल-ऐ-नादां को समझ नहीं आ रहा है क्या करे. तख़्त-ओ-ताज
हो या झोपडा, भावनाएं तो इंसानी ही होती हैं. मर्सिडीज में हो या
बैलगाडी में, विचार कमबख्त एक जैसे आते हैं, शब्दों का हेर फेर
हो सकता है. भूख सभी को लगती है, सामान अलग लगा हो सकता
है, पानी की प्यास हो सकती है या कोल्ड ड्रिंक की. तत्व एक ही
रहेगा-तरल पदार्थ की तमन्ना है तो वही चाहिए. चाय की जगह
समोसा नहीं ले सकता. सूखी रोटी की जगह सूखा बर्गर ले सकता
है.
तू मेरा हीरो है-जैसे गीतों के युग में अवतरित हुआ ये गीत आज भी
उतने ही चाव से सुना जाता है जितना सन १९८३ में. लता का एक
गीत फिल्म हीरो में भी है मगर जो ताजगी इस आवाज़ में सुनाई देती
है वो लता के गाये और सन १९८३ में आये बाकी गीतों में नहीं है.
गीत के बोल:
ए दिल-ए-नादां, ए दिल-ए-नादां,
आरज़ू क्या है, जुस्तजू क्या है
ए दिल-ए-नादां, ए दिल-ए-नादां,
आरज़ू क्या है, जुस्तजू क्या है
ए दिल-ए-नादां
हम भटकते हैं, क्यों भटकते हैं,
दश्तो-सेहरा में
ऐसा लगता है, मौज प्यासी है,
अपने दरिया में
कैसी उलझन है, क्यों ये उलझन है
एक साया सा, रू-बरू क्या है
ए दिल-ए-नादां, ए दिल-ए-नादां,
आरज़ू क्या है, जुस्तजू क्या है
क्या क़यामत है, क्या मुसीबत है,
कह नहीं सकते, किसका अरमाँ है
ज़िंदगी जैसे, खोयी-खोयी है, हैरां हैरां है
ये ज़मीं चुप है, आसमां चुप है
फिर ये धड़कन सी, चार सू क्या है
ए दिल-ए-नादां, ए दिल-ए-नादां,
ऐसी राहों में, कितने काँटे हैं,
आरज़ूओं ने, आरज़ूओं ने,
हर किसी दिल को, दर्द बाँटे हैं,
कितने घायल हैं, कितने बिस्मिल हैं,
इस खुदाई में, एक तू क्या है
एक तू क्या है, एक तू क्या है
ए दिल-ए-नादां, ए दिल-ए-नादां
...........................................................
Ae dil-e-nadaan-Razia Sultan 1983
1 comments:
Khayyam RIP
Post a Comment