अपनी तो हर आह एक तूफ़ान है-काला बाज़ार १९६०
इस गीत को आप सुनेंगे तो ऐसा लगेगा की उपरवाले, अर्थात
सर्वशक्तिमान के बारे में कुछ कहा जा रहा है । विडियो देखिये
आपका भ्रम दूर हो जाएगा। फ़िल्म में हीरो ट्रेन में सफर कर
रहा है। ऊपर की बर्थ पर सोयी हिरोइन को देख कर उसके दिमाग
में एक गीत आता है और वो गाने लगता है। अक्सर हिन्दी फिल्मों
में ऐसा होता आया है और आगे भी होता रहेगा। गौर करने लायक
बात ये है की महिलाएं ऊपर की बर्थ पर हैं और पुरूष नीचे की बर्थ पर।
आज की स्तिथि में महिलाएं सर्वाधिकार समझती हुई नीचे की बर्थ
पर पसर जाती हैं जबकि उनके पास ऊपर की बर्थ हो। लगता है ये
उदारवादी दौर था भारतीय रेल का। शब्द "उपरवाले" से हमारा हीरो
बेवकूफ बनाने की खूबसूरत कोशिश में तल्लीन है। उसका गाना
सुनकर सभी चकित और भ्रमित से दिखते हैं इस रेल के प्रथम श्रेणी
के डब्बे में। कोयले वाला रेल का इंजन ऐसी ही आवाजें निकालता
था जैसी इस गाने में हैं। एक बढ़िया सिचुएशनल गीत है जिसे गाया
रफ़ी ने है , इसके गीतकार शैलेन्द्र और संगीतकार एस डी बर्मन हैं ।
गीत में जो माला जपने वाली अभिनेत्री हैं उनका नाम है
मुमताज़ बेगम। इन्होने एक और फ़िल्म में देव आनंद के साथ
काम किया है वो है गैम्बलर ।
गीत के बोल
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
क्या करे वो जान कर अंजान है
ऊपर वाला जान कर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
ऊपर वाला जानकर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
अब तो हँस के अपनी भी क़िस्मत को चमका दे
कानों में कुछ कह दे जो इस दिल को बहला दे
ये भी मुश्किल है तो क्या आसान है
ऊपर वाला जान कर अन्जान है ...
सर पे मेरे तू जो अपना हाथ ही रख दे
फिर तो भटके राही को मिल जायेंगे रस्ते
दिल की बस्ती बिन तेरे वीरान है
ऊपर वाला जानकर अन्जान है ...
दिल ही तो है इसने शायद भूल भी की है
ज़िंदगी है भूल कर ही राह मिलती है
माफ़ कर बन्दा भी इक इन्सान है
ऊपर वाला जान कर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
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