Jun 2, 2009

एक अकेला इस शहर में-घरोंदा १९७७

आज एक दर्द भरा गीत गुलज़ार का लिखा हुआ फिल्म घरोंदा से।
टूटा हुआ सा नायक महानगर में अपने सपनों के घर की तलाश
में है। उसकी भावनाएं किस तरह से बाहर आती हैं आइये जानने
के लिए सुनें ये गीत। गायक हैं भूपेंद्र । गीत के बोल हैं गुलज़ार के
जिसको संगीतबद्ध किया है जयदेव ने। अमोल पालेकर नाम के
कलाकार पर ये गीत फिल्माया गया है।

किस म्युनिसिपेलटी के बंद हो चुके नल की मानिंद आंसू एक मिनट
में एक वाले अंदाज़ में निकलने का मतलब है दर्द की इन्तहा हो चुकी है
और आंसुओं का स्टॉक खत्म हो गया है.
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गाने के बोल:

एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढता है, आशियाना ढूँढता है

दिन खाली खाली बर्तन है
दिन खाली खाली बर्तन है, और रात है जैसे अंधा कुआँ
इन सूनी अन्धेरी आँखों में, आँसू की जगह आता हैं धुआं
जीने की वजह तो कोई नहीं, मरने का बहाना ढूँढता है

एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढता है, आशियाना ढूँढता है
एक अकेला इस शहर में

इन उम्र से लम्बी सड़कों को
इन उम्र से लम्बी सड़कों को, मन्ज़िल पे पहुँचते देखा नहीं
बस दौड़ती फिरती रहती हैं, हम ने तो ठहरते देखा नहीं
इस अजनबी से शहर में, जाना पहचाना ढूँढता है

एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढता है, आशियाना ढूँढता है
एक अकेला इस शहर में

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