रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं -दिल की राहें १९७३
"रस्म- ए- उल्फत को निभाएं कैसे " गाना गंभीर संगीत प्रेमियों
के लिए बनाया गया सा प्रतीत होता है । आश्चर्य है कि इसको
सबसे ज्यादा आम आदमी ने पसंद किया और फ़रमाईशी गीतों
वाले प्रोग्राम जो ७०-८० की दशक में प्रसारित किए जाते थे इस
बात के गवाह हैं।
इसको नक्श लायलपुरी ने लिखा है। संगीत मदन मोहन का है।
यू ट्यूब पर एक लता-भक्त ने लता जी की तस्वीरों का एक शानदार
स्लाइड शो बनाया है।
इस गीत के बारे में किसा है कि शोर्ट नोटिस पर गीतकार को
ये गीत लिखने को कहा गया था। उन्होंने सड़क पर यहां वहाँ बैठ
कर इसे लिखा था।
गीत के बोल
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाएं कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाएं कैसे
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं
दिल की राहों में उठाते हैं जो दुनिया वाले
दिल की राहों में उठाते हैं जो दुनिया वाले
कोई कह दे के वो दीवार गिराएं कैसे
कोई कह दे के वो दीवार गिराएं कैसे
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं
दर्द में डूबे हुए नग़मे हज़ारों हैं मगर
दर्द में डूबे हुए नग़मे हज़ारों हैं मगर
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाए कैसे
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाए कैसे
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं
बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते
बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते
ज़िंदगी बोझ बनी हो तो उठाएं कैसे
ज़िंदगी बोझ बनी हो तो उठाएं कैसे
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं
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Rasm-e-ulfat ko nibhayen kaise-Dil ki rahein 1973
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