Oct 30, 2009

दो दीवाने शहर में-घरोंदा १९७७

घरोंदा फ़िल्म एक संघर्षरत युवक की कहानी है जो आशियाने की
तलाश में तरह तरह के प्रयत्न करता है। बड़े शहरों में सामान्य
वेतन वाले कर्मचारी के लिए अपने मकान की कल्पना करना एक
दिवा स्वप्न जैसा है। सीमित संसाधनों के चलते वो प्रयास करने
की स्थिति में भी नहीं होता और किराये के मकान में ज़िन्दगी
गुजार देता है। ये गाना उन दिनों में आया था जब हमारे बाज़ारों
में करोंदा नाम का खाद्य पदार्थ मिला करता था। उपवासी जनता
साबूदाने का काफ़ी प्रयोग करती थी । कुछ मनचले युवक इस गाने
को यूँ पहचाना करते- फ़िल्म करोंदा से साबूदाना वाला गाना। तो
जनाब गाने याद रहने की एक अजीबोगरीब वजह है ये। दूसरी वजह
ये है की इस गाने में गायक भूपेंद्र का साथ दिया है रुना लैला ने
जो बांग्लादेश की प्रसिद्ध गायिका हैं और बहुत ही तबियत से गाने
गाती हैं। बंगला संगीत जगत उनको हिन्दी फिल्मों के पहले से
जानता है। गीत में अमोल पालेकर और ज़रीना वहाब कलाकार हैं।



गीत के बोल :

भूपेंद्र : दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढते हैं एक आशियाना ढूँढते हैं
रुना : दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढते हैं एक आशियाना ढूँढते हैं

रुना: इन भूलभुलइया गलियों में, अपना भी कोई घर होगा
अम्बर पे खुलेगी खिड़की या, खिड़की पे खुला अम्बर होगा
भूपेंद्र: इन भूलभुलइया गलियों में, अपना भी कोई घर होगा
अम्बर पे खुलेगी खिड़की या, खिड़की पे खुला अम्बर होगा

असमानी रंग की आँखों में
रुना: असमानी या आसमानी?
भूपेंद्र: असमानी रंग की आँखों में
बसने का बहाना ढूंढते हैं, ढूंढते हैं
रुना: आबोदाना ढूंढते हैं, एक आशियाना, ढूंढते हैं

दोनों: दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढते हैं एक आशियाना ढूँढते हैं
दो दीवाने शहर में,

रुना: हा आ आ आ आ
भूपेंद्र: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
रुना: तारे, और ज़मीं पर?
भूपेंद्र: of course
भूपेंद्र: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
रुना: हूँ हूँ हूँ...
भूपेंद्र: आकाश ज़मीं हो जाता है
रुना: आ आ आ
भूपेंद्र: उस रात नहीं फिर घर जाता, वो चांद यहीं सो जाता है
रुना: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
आकाश ज़मीं हो जाता है
उस रात नहीं फिर घर जाता, वो चांद यहीं सो जाता है
भूपेंद्र: पल भर के लिये
रुना: पल भर के लिये
भूपेंद्र: पल भर के लिये, इन आँखों में, हम एक ज़माना ढूंढते हैं, ढूंढते हैं
रुना: आबोदाना, ढूंढते हैं एक आशियाना, ढूंढते हैं
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Do deewane shahar mein-Gharonda 1977

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