ग़म दिये मुस्तक़िल-शाहजहाँ १९४६
फ़िल्म शाहजहाँ का एक गीत। गायक कलाकार हैं
के एल सहगल, संगीत है नौशाद का और बोल हैं मजरूह के ।
इसमे भाषा थोड़ी कठिन है मगर सुनने के आनंद में वो
कहीं से भी बाधा नहीं । गीत परदे पर भी सहगल गा रहे हैं।
गाने के बोल:
ग़म दिये मुस्तक़िल, कितना नाज़ुक है दिल, ये न जाना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना
दे उठे दाग लौ उनसे ऐ माह-ए-नौ कह सुनना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना
दिल के हाथों से दामन छुड़ाकर
ग़म की नज़रों से नज़रें बचाकर
उठके वो चल दिये, कहते ही रह गये हम फ़साना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना
कोई मेरी ये रूदाद देखे, ये मोहब्बत की बेदाद देखे
फुक रहा है जिगर, पड़ रहा है मगर मुस्कुराना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना
ग़म दिये मुस्तक़िल, कितना नाज़ुक है दिल, ये न जाना
हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना
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