कई बार यूँ भी देखा है -रजनीगंधा १९७४
इस गाने के लिए मुकेश को फिल्मों में गायन का
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था। रजनीगंधा एक थोडी लीक
से हटकर और सराहनीय फ़िल्म थी जिसे दर्शकों ने बेहद
पसदं किया, ये अलग बात है कि प्रशंसकों में
बुद्धिजीवियों की संख्या ज्यादा है। गीत के बोल लिखे हैं योगेश ने
और संगीतकार हैं सलिल चौधरी ।
गाने के बोल:
कई बार यूँ भी देखा है
ये जो मन के सीमा रेखा है
मन तोड़ने लगता है
कई बार यूँ भी देखा है
ये जो मन के सीमा रेखा है
मन तोड़ने लगता है
अनजानी चाह के पीछे
अन्जानी आस के पीछे
मन दौड़ने लगता है
राहों में, राहों में
जीवन की राहों में
जो खिले हैं फूल
फूल मुस्कुरा दे
कौनसा फूल चुराके
रख लूँ मन में सजा के
कई बार यूँ भी देखा है...
जानूँ ना, जानूँ ना
उलझन ये, जानूँ ना
सुलझाऊं कैसे,
कुछ समझ न पाऊँ
किसको मीत बनाऊँ,
किसकी प्रीत भुलाऊँ
कई बार यूँ भी देखा है
ये जो मन के सीमा रेखा है
मन तोड़ने लगता है
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