Oct 2, 2009

पूछो न कैसे मैंने-मेरी सूरत तेरी ऑंखें १९६३

इसको कहते हैं देर आए दुरुस्त आए। मन्ना डे को दादा साहेब
फाल्के पुरस्कार दिया जाना अचम्भे से बड़कर कुछ नहीं है।
हिन्दी फ़िल्म संगीत के सबसे सहज गायक को इतने दिन तक कैसे
भुला कर रखा था हमारे संगीत प्रेमियों और पुरस्कार व्यवस्थापकों !
गायकी का जो मज़ा मन्ना डे के गीतों में है वो दूसरे पार्श्व गायकों के
गानों में नहीं आता। किसी की आवाज़ बढ़िया है तो किसी का अंदाज़
बढ़िया है। गायकी बढ़िया किसकी है इसपर चर्चा कम हुई है अभी तक।
इसलिए मन्ना डे के गानों पर वाह-वाह करने वाले आपको पत्रिकाओं और
ब्लॉग वगरह पर नहीं मिलेंगे। मन्ना डे के भक्त थोड़ा उन्ही की तरह सौम्य
और शर्मीले हैं। आज आपके लिए पेश है हिन्दी सिने संगीत का एक अमर गीत
जो ख़ुद इसके संगीतकार एस डी बर्मन को बेहद पसंद रहा है । फ़िल्म है
'मेरी सूरत तेरी ऑंखें। कलाकार हैं परदे पर दादा मुनि यानी कि अशोक कुमार।



गाने के बोल :

पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई
पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई

एक पल जैसे एक जुग बीता
एक पल जैसे एक जुग बीता
जुग बीते मोहे नींद न आई

पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई

उत जले दीपक इत् मन मेरा
फ़िर भी न जाए मेरे घर का अँधेरा

उत जले दीपक इत् मन मेरा
फ़िर भी न जाए मेरे घर का अँधेरा

तरपत तरसत उमर गंवाई

पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई

न कहीं चंदा न कहीं तारे
ज्योत के प्यासे मेरे नयन बेचारे

न कहीं चंदा न कहीं तारे
ज्योत के प्यासे मेरे नयन बेचारे
भोर भी आस की किरन न लायी

पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई
पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई
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Artist: Ashok Kumar

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