बाबुल तेरे बागां दी मैं बुलबुल-झील के उस पार १९७३
फ़िल्म का नाम है झील के उस पार, १९७३ में आई थी।
एक अंधी लड़की का बाप अपने अन्तिम समय में एक
गाने की फरमाइश करता है. अनहोनी की आशंका से
ग्रस्त नायिका गीत सुना रही है.इस गीत की भावनाएं
मुझे हमेशा झंझोड़ती हैं उसका कारण इसमें दर्द
का कूट कूट कर भरा होना है । गीत अच्छा है
और मुझे उम्मीद है आपको भी पसंद आएगा ।
बोल आनंद बक्षी के हैं और संगीत राहुल देव बर्मन का।
गीत गाया है लता मंगेशकर ने.
गाने के बोल:
बाबुल तेरे बागां दी मैं बुलबुल
बाबुल तेरे बागां दी मैं बुलबुल
तुझे कौनसा गीत सुनाऊँ
मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
हो, मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
बाबुल तेरे बागां दी मैं बुलबुल
तुझे कौनसा गीत सुनाऊँ
मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
हो, मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
तेरे बिना मेरी कोई कदर न जाने
लोग दीवाने, लोग दीवाने
तेरे बिना मेरी कोई कदर न जाने
लोग दीवाने, लोग दीवाने
बेगाने सब अनजाने,
किसे मन की बात बताऊँ
मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
हो, मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
याद नहीं भूल गई मुझे
प्यारी प्यारी सूरत तेरी, ओ मूरत तेरी
याद नहीं भूल गई मुझे
प्यारी प्यारी सूरत तेरी, ओ मूरत तेरी
युग बीते तुझे देखे
मैं कैसे तस्वीर बनाऊं
मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
हो, मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
डोली नही, तो न सही
मुझे अर्थी में तू बिठलाना
ओ फ़िर तू जाना
डोली नही, तो न सही
मुझे अर्थी में तू बिठलाना
ओ फ़िर तू जाना
सो जाना मत खो जाना
सो जाना मत खो जाना
मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
हो, मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
बाबुल तेरे बागां दी मैं बुलबुल
बाबुल तेरे बागां दी मैं बुलबुल
तुझे कौनसा गीत सुनाऊँ
मैं रोऊँ या मुस्काऊँ
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