बाँहों के दरमियान -खामोशी १९९७
खामोशी फ़िल्म का ये गाना मेरे लिए ख़ास अहमियत रखता है।
निराशा के दौर में इस गाने ने मेरे मनोबल को बनाये रखने और
नकारात्मक चीज़ों से ध्यान बांटने में बहुत मदद की। इस फ़िल्म का
संगीत वाकई थोड़ा 'अलग हट के ही' था। हरिहरन की आवाज़ मुझे
पसंद है कुछ इस वजह से भी ये गाना मुझे आकर्षित करता है।
बाँहों के दरमियान के आगे क्या गाया गया है मुझे कभी याद नहीं रहा।
बस, आखिर में "धड़कन बनी दिल की जुबां" सुनाई दे जाता है। धुन की
काफ़ी है खोने के लिए। संगीतकार की अपनी पसंद होती है
मगर मेरे हिसाब से इसमे कविता कृष्णामूर्ति की आवाज़ होनी
चाहिए थी। इसको गाया है हरिहरन और अलका याग्निक ने और
संगीत से संवारा है जतिन-ललित ने। संजय लीला भंसाली की
छाप आप महसूस कर सकते हैं गाने में जो थोड़े थोड़े परिंदा के
निर्देशक विधु विनोद चोपडा के अंदाज़ में ही इसको प्रस्तुत
करते नज़र आते हैं। गीत बोलचाल की भाषा में बना हुआ प्रतीत
होता है जिसको मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है। मजरूह की
लेखनी की धर आप महसूस करेंगे इसको सुनकर।
गाने के बोल:
बाहों के दरमियान दो प्यार मिल रहे हैं
बाहों के दरमियान दो प्यार मिल रहे हैं
जाने क्या बोले मन, डोले सुनके बदन
धड़कन बनी जुबां
बाहों के दरमियान दो प्यार मिल रहे हैं
जाने क्या बोले मन, डोले सुनके बदन
धड़कन बनी जुबां
बाहों के दरमियान
खुलते बंद होते लबों की ये अनकही
खुलते बंद होते लबों की ये अनकही
मुझसे कह रही है बढ़ने दे बेखुदी
मिल यूँ के दौड़ जायें नस नस में बिजलियाँ
बाहों के दरमियान दो प्यार मिल रहे हैं
जाने क्या बोले मन, डोले सुनके बदन
धड़कन बनी जुबां
बाहों के दरमियान
आसमान को भी ये हसीं राज़ है पसंद
आसमान को भी ये हसीं राज़ है पसंद
उलझी उलझी साँसों की आवाज़ है पसन्द
मोटी लुटा रही है सावन की बदलियाँ
बाहों के दरमियान दो प्यार मिल रहे हैं
जाने क्या बोले मन, डोले सुनके बदन
धड़कन बनी जुबां
बाहों के दरमियान
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