Nov 1, 2009

उठेगी तुम्हारी नज़र-एक राज़ १९६३

चित्रगुप्त के संगीत निर्देशन में लता द्वारा
गाये १-२ गीत का जिक्र हम पहले कर चुके हैं.
आज आपको एक गीत के बारे में बताया जाएगा जो
सुपर हिट गीत है. किशोर कुमार अभिनीत १९६३ में
आई फ़िल्म "एक राज़" के लिए ये गीत लिखा है
मजरूह सुल्तानपुरी ने। खलनायक को रिझाने में
मशगूल फ़िल्म की एक सहायक कलाकार ये गीत परदे
पर गा रही है जो गाते समय बेहद गदगद दिखाई दे रही हैं।
आम तौर पर इस प्रकार की स्तिथि में कई संगीतकार
थोडी कमतर धुन बनाके काम चला लिया करते हैं ।
इस गाने की बात अलग है । ये गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ
और आज तक सुनाई दे रहा है । धुन और बोल दोनों
लाजवाब हैं इसके ।



गाने के बोल:

प्यार ही से प्यार की किस्मत बना ली जायेगी
तुम ये मत समझो मेरी फरियाद खली जायेगी

उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे धीरे
उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे धीरे

उठेगी तुम्हारी, नज़र धीरे धीरे
मुहब्बत करेगी असर धीरे धीरे
मुहब्बत करेगी असर धीरे धीरे

ये माना खलिश है अभी हल्की हल्की
ये माना खलिश है अभी हल्की हल्की
ख़बर भी नहीं है तुम को मेरे दर्द-ऐ-दिल की
मेरे दर्द-ऐ-दिल की
ख़बर हो रहेगी मगर धीरे धीरे
उठेगी तुम्हारी नज़र.........

मिलेगा जो कोई हसीं चुपके चुपके
मिलेगा जो कोई हसीं चुपके चुपके
मेरी याद आ जायेगी वहीं चुपके चुपके
वहीं चुपके चुपके
सताएगा दर्द-ऐ-जिगर धीरे धीरे

उठेगी तुम्हारी नज़र..........

सुलगते हैं कब से इसी चाह में हम
सुलगते हैं कब से इसी चाह में हम
पड़े हैं निगाहें डाले इसी राह में हम
इसी राह में हम
कि आओगे तुम भी इधर धीरे धीरे

उठेगी तुम्हारी, नज़र धीरे धीरे
मुहब्बत करेगी असर धीरे धीरे

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