बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों- शगुन १९६४
केवल माथे की मांशपेशियों को हिला हिला कर चेहरे के
भावों को कैसे बदला जाए सिखा रही हैं वहीदा रहमान।
ऑंखें साथ नहीं दे रही हैं भावों को उभारने में। गाना थोड़ा
आगे बढ़ता है उसके बाद ग्लीसरीन की सहायता मिल
जाती है। इस गाने से ज्यादा वहीदा रहमान की एक्टिंग
की तारीफ़ पढ़ी है मैंने बहुत जगह। वहीदा एक अच्छी कलाकार
जरूर हैं मगर इस गाने से बेहतर एक्टिंग उन्होंने कई दूसरे
गानों में की है । इसको कहते हैं कमजोर डायरेक्शन का एक
नमूना । इस फ़िल्म में दो नामचीन हस्तियों ने अपनी साहित्यिक
सेवाएँ दी हैं। साहिर लुधियानवी जिन्होंने गीत लिखे हैं और
जलाल मलीहाबादी जिन्होंने इस फ़िल्म के डायलोग लिखे हैं।
गाना सुमन कल्याणपुर के मधुरतम गीतों में से एक है, फ़िल्म
शगुन के लिए इसकी तर्ज़ बनाई है संगीतकार खय्याम ने ।
गाने के बोल:
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों
मोहब्बतों के दिए जला के
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों
मोहब्बतों के दिए जला के
मेरी वफ़ा ने उजाड़ दी हैं
मेरी वफ़ा ने उजाड़ दी हैं
उम्मीद की बस्तियां बसा के
तुझे भुला देंगे अपने दिल से
ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
तुझे भुला देंगे अपने दिल से
ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
न दिल को मालूम है न हमको
न दिल को मालूम है न हमको
जियेंगे कैसे तुझे भुला के
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों
मोहब्बतों के दिए जला के
कभी मिलेंगे जो रास्ते में
तो मुहँ फिर कर पलट पड़ेंगे
कभी मिलेंगे जो रास्ते में
तो मुहँ फिर कर पलट पड़ेंगे
कहीं सुनेंगे जो नाम तेरा
कहीं सुनेंगे जो नाम तेरा
तो चुप रहेंगे नज़र झुका के
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों
मोहब्बतों के दिए जला के
न सोचने पर भी सोचती हूँ
के जिंदगानी में क्या रहेगा
न सोचने पर भी सोचती हूँ
के जिंदगानी में क्या रहेगा
तेरी तमन्ना को दफ़न कर के
तेरे ख्यालों से दूर जाके
तेरी तमन्ना को दफ़न कर के
तेरे ख्यालों से दूर जाके
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों
मोहब्बतों के दिए जला के
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