दिल का दिया जला के गया-आकाशदीप १९६५
दिया गया एक नायाब तोहफा है ये गीत। चित्रगुप्त के
एक बढ़िया गीत पर हम चर्चा पहले कर चुके हैं। आइये
इस गीत को सुनकर उनको धन्यवाद् दें। इसके बोल लिखे
हैं मजरूह सुल्तानपुरी ने। निम्मी बहुत खुशकिस्मत थी कि
उनके हिस्से में लता मंगेशकर के कुछ सबसे कर्णप्रिय
गीत आए। इस गाने कि खूबी है इसमें घंटियों की टुनटुनाहट ।
और तो और -"तन पे उजाला फ़ैल गया पहली ही अंगडाई में "।
वाह मजरूह साहब वाह, क्या कल्पना करते थे आप भी :)
गाने के बोल:
दिल का दिया जला के गया,
ये कौन मेरी तन्हाई में
दिल का दिया जला के गया,
ये कौन मेरी तन्हाई में
सोये नग़मे जाग उठे, होंठों की शहनाई में
दिल का दिया ...
प्यार अरमानों का दर खटकाए
ख़्वाब जागी आँखों से मिलने को आये
प्यार अरमानों का दर खटकाए
ख़्वाब जागी आँखों से मिलने को आये
कितने साये डोल पड़े, सूनी सी अंगनाई में
दिल का दिया ...
एक ही नज़र में निखर गई मैं तो,
आइना जो देखा संवर गई मैं तो
एक ही नज़र में निखर गई मैं तो,
आइना जो देखा संवर गई मैं तो
तन पे उजाला फैल गया,
पहली ही अंगड़ाई में
दिल का दिया ...
काँपते लबों को मैं खोल रही हूँ,
बोल वही जैसे के बोल रही हूँ
काँपते लबों को मैं खोल रही हूँ,
बोल वही जैसे के बोल रही हूँ
बोल जो डूबे से हैं कहीं,
इस दिल की गहराई में
दिल का दिया जला के गया,
ये कौन मेरी तन्हाई में
दिल का दिया
......................................................................
Dil ka diya jala ke gaya-Aksha deep 1965
0 comments:
Post a Comment