Dec 26, 2009

ऐ भाई,ज़रा देख के चलो-मेरा नाम जोकर १९७०

नीरज का लिखा हुआ ये गीत कविता और गीत दोनों का मजा देता है।
ज़िन्दगी की सर्कस से तुलना करता ये गीत गाया है मन्ना डे ने फिल्म 'मेरा
नाम जोकर' के लिए । इसकी धुन बनाई है शंकर जयकिशन ने। राज कपूर
की सबसे महत्वकांक्षी फिल्म में प्रतीकों का बखूबी इस्तेमाल किया गया है।
साइकिल चलाते बन्दर को देख के मुझे आजकल के वाहन चालक याद आते हैं।






गीत के बोल:

ए भाई, ज़रा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बायें भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी
ए भाई
ए भाई, ज़रा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बायें भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी
ए भाई

तू जहाँ आया है वो तेरा, घर नहीं, गाँव नहीं
गली नहीं, कूचा नहीं, रस्ता नहीं, बस्ती नहीं

दुनिया है, और प्यारे, दुनिया यह सरकस है
और इस सरकस में ,बड़े को भी, छोटे को भी
खरे को भी, खोटे को भी, मोटे को भी, पतले को भी
नीचे से ऊपर को, ऊपर से नीचे को
बराबर आना-जाना पड़ता है

और रिंग मास्टर के कोड़े पर ,कोड़ा जो भूख है
कोड़ा जो पैसा है, कोड़ा जो क़िस्मत है
तरह-तरह नाच कर दिखाना यहाँ पड़ता है
बार-बार रोना और गाना यहाँ पड़ता है
हीरो से
हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है

ए भाई

गिरने से डरता है क्यों, मरने से डरता है क्यों
ठोकर तू जब न खाएगा, पास किसी ग़म को न जब तक बुलाएगा
ज़िंदगी है चीज़ क्या नहीं जान पायेगा
रोता हुआ आया है रोता चला जाएगा

ए भाई
ए भाई, ज़रा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बायें भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी
ए भाई

क्या है करिश्मा, कैसा खिलवाड़ है
जानवर आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है
खाता है कोड़ा भी रहता है भूखा भी
फिर भी वो मालिक पर करता नहीं वार है

और इंसान ये ,माल जिस का खाता है
प्यार जिस से पाता है, गीत जिस के गाता है
उसी के ही सीने में भोंकता कटार है

हा हा, कहिये श्रीमान आपका क्या विचार है

माल जिस का खाता है
प्यार जिस से पाता है, गीत जिस के गाता है
उसी के ही सीने में भोंकता कटार है

ए भाई

हाँ बाबू, यह सरकस है शो तीन घंटे का
पहला घंटा बचपन है, दूसरा जवानी है
तीसरा बुढ़ापा है

और उसके बाद ,माँ नहीं, बाप नहीं
बेटा नहीं, बेटी नहीं, तू नहीं,
मैं नहीं, कुछ भी नहीं रहता है
रहता है जो कुछ वो , ख़ाली-ख़ाली कुर्सियाँ हैं
ख़ाली-ख़ाली तंबू है, ख़ाली-ख़ाली घेरा है
बिना चिड़िया का बसेरा है, न तेरा है, न मेरा है

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