अकेला हूँ मैं इस दुनिया में-बात एक रात की १९६२
नायक को दुनिया में अकेला होने का कोई गम नहीं है। ऐसे ही
नज़रिए की ज़रुरत होती है जीवन में। इसको परदे पर गा रहे हैं
देव आनंद। गीत मजरूह का लिखा हुआ है और सन १९६२ की
फिल्म 'बात एक रात की के लिए इसका संगीत तैयार किया है
सचिन देव बर्मन ने। साथी मिल गया तो ठीक ना मिला तो ठीक।
साइकल पर स्वर नायक अपने साये के साथ ही खुश है और
फ़िल्मी आशा के अनुरूप उसको अगली रील तक कोई हमसफ़र
ज़रूर मिल जायेगा ।
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गाने के बोल:
अकेला हूँ मैं इस दुनिया में
कोई साथी है तो मेरा साया
अकेला हूँ मैं
न तो परवाना और न दीवाना,
मैं किसी महफ़िल का
सूनी सूनी राहें, थामती हैं बाहें
ग़म किसे मन्ज़िल का
मैं तो हूँ राही दिल का
साथी है तो मेरा साया
अकेला हूँ मैं
जैसे कभी प्यारे, झील के किनारे,
हँस अकेला निकले
वैसे ही देखोजी, ये मन मौजी
मौजों के सीने पे चले
चाँद सितारों के तले
साथी है तो मेरा साया
अकेला हूँ मैं इस दुनिया में
कोई साथी है तो मेरा साया
अकेला हूँ मैं
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Akela hon main-Baat Ek Raat Ki 1962
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