ओ गवालन क्यूँ मेरा मन-चम्पाकली १९५७
मगर क्या आपने कभी ग्वालन के जिक्र वाला गीत सुना है ? ये गीत
अनूठा है और इसमें गवालन का जिक्र है। गीत से अलबत्ता आपको ये
मालूम नहीं पड़ेगा की गवालन असली है या नाम की। फार्मूला यूँ हो
सकता है-कृष्ण बांसुरी बजाते थे, ग्वाले थे(?), मतलब ग्वाले बांसुरी
बजाते हैं। यहाँ ग्रामीण परिवेश है और नायिका बांसुरी के साथ कुश्ती
लड़ रही है या यूँ कहें बजा रही है संभव है वो ग्वालन हो । जनता से
एक बांसुरी ढंग से नहीं बजती वो तो डबल बांसुरी बजा रही है।
ग्वाले गाय, भैंस, बकरी सभी कुछ चरा सकते हैं। आधुनिक ग्वालों
को ही लीजिये, व्यवस्था का दूध निकाल कर वे आम जन को चरा जो
रहे हैं।
खैर, गीत का पहला १ मिनट का हिस्सा किसी खांसी की दवाई के लिए
उपयुक्त विज्ञापन बन सकता है, क्यूँ ये जानने के लिए ही गीत देख-सुन
लीजिये जनाब।
भ्रमित, चकित और अचंभित से नायक नायिका । कभी कभी ऐसे गीत
देखके आनंद आता है। सुचित्रा सेन और भारत भूषण पर गीत फिल्माया
गया है । एक हल्का फुल्का गीत गा रहे हैं रफ़ी फिल्म चम्पाकली के
लिए। राजेंद्र कृष्णके बोलों को धुन में ढाला है हेमंत कुमार ने। नींद नहीं
आ रही हो तो रातके वक़्त इस गीत को देखिये । नायिका की नशीली
ऑंखें देख के शर्तियाआपको झपकी आ जाएगी। भारत भूषण ने भी इस
गीत में खूब दीदे फाड़े हैं। ऐसा लगता है जैसे दोनों के बीच प्रतियोगिता चल
रही हो।
गीत के बोल:
ओ गवालन क्यूँ मेरा मन तेरी चितवन ले गयी
ओ गवालन क्यूँ मेरा मन तेरी चितवन ले गयी
बांसुरी की तान प्यारी बेक़रारी दे गयी
बांसुरी की तान प्यारी बेक़रारी दे गयी
ये अदा ये भोलपन ये गाल पर जुल्फों की घटा
ये अदा ये भोलपन ये गाल पर जुल्फों की घटा
अब किसी को क्या बताऊँ
अब किसी को क्या बताऊँ क्यूँ मेरा दिल खो गया
ये उमरिया ये नजरिया दिल को धड़कन दे गयी
ओ गवालन क्यूँ मेरा मन तेरी चितवन ले गयी
ये गुलाबी होंठ जैसे पांखडी सी है फूल की
ये गुलाबी होंठ जैसे पांखडी सी है फूल की
आप अपना चैन खोया
आप अपना चैन खोया देख कर ये क्या भूल की
दर्द न्यारा प्यारा प्यारा प्रीत पापन दे गयी
ओ गवालन क्यूँ मेरा मन तेरी चितवन ले गयी
बांसुरी की तान प्यारी बेक़रारी दे गयी
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O gawalan kyun mera man-Champakali 1957
Artists: Bharat Bhushan, Suchitra Sen
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