मैं निगाहें तेरे चेहरे से-आप की परछाईयाँ १९६४
बात की थी अभी कुछ पोस्ट पहले। आइये इस जोड़ी का एक हिट
गीत सुनवाया जाए। फर्क इतना है कि इस गीत में आपको नायक
जाना पहचाना मिलेगा और नायिका अजनबी सी। धर्मेन्द्र और
सुप्रिया चौधरी नाम के कलाकारों पर इसे फिल्माया गया है। सुप्रिया
चौधरी बंगला फिल्मों का जाना माना नाम है। हिंदी में उनकी गिनती
की फ़िल्में ही आई इसलिए आम जनता उनके नाम से ज्यादा परिचित
नहीं है। मदन मोहन की दो फ़िल्में १९६४ में आई -ग़ज़ल और आप की
परछाईयाँ। दोनों फिल्मों में गज़लें बहुत सी हैं। फिल्म ग़ज़ल में गीत
लेखन का कार्य साहिर ने किया था। मदन मोहन को अच्छी गजलों के
लिए पहचान दिलाने में ये दो फिल्मों की अहम् भूमिका रही है। नायिका
की ऑंखें दूसरी बंगला हीरोइनों की भांति बड़ी बड़ी हैं। और जो दूसरी बड़ी
चीज़ उनके मुखमंडल में दिखाई दे रही है वो है-कानों में लटक रहे बड़े बड़े
झुमके।
गीत के बोल:
मैं निगाहें, तेरे चेहरे से, हटाऊँ कैसे
मैं निगाहें, तेरे चेहरे से, हटाऊँ कैसे
लुट गए होश तो, फिर होश में, आऊं कैसे
मैं निगाहें, तेरे चेहरे से, हटाऊँ कैसे
मैं निगाहें
छा रही थी तेरी महकी हुई जुल्फों की घटा
तेरी आँखों ने,
तेरी आँखों ने, पिला दी तो मैं, पीता ही गया
तौबा तौबा, तौबा तौबा, तौबा तौबा
वो नशा है, के बताऊँ कैसे
मैं निगाहें
मेरी आँखों में, गिले शिकवे हैं, और प्यार भी है
आरज़ुएँ
आरज़ुएँ भी हैं और हसरत-ए-दीदार भी है
इतने तूफ़ान, तूफ़ान
इतने तूफ़ान, मैं आँखों में, छुपाऊँ कैसे
मैं निगाहें
शोख नज़रें ये, शरारत से ना, बाज़ आएँगी
कभी रूठेंगी
कभी रूठेंगी, कभी मिल के, पलट जायेंगी
तुझ से निभ जायेगी, निभ जायेगी
तुझ से निभ जायेगी, मैं इन से, निभाऊं कैसे
मैं निगाहें, तेरे चेहरे से, हटाऊँ कैसे
लुट गए होश तो, फिर होश में, आऊं कैसे
मैं निगाहें, तेरे चेहरे से, हटाऊँ कैसे
मैं निगाहें
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