आना है तो चले आओ-टैक्सी स्टैंड १९५८
एक कर्णप्रिय युगल गीत सुनवाया जाए आज। ये है एक
गुमनाम सी फिल्म 'टैक्सी स्टैंड' से। फिल्म सन १९५८ में
रिलीज़ हुई थी। उम्मीद है कि बड़े बड़े सिनेमा प्रशंसकों ने
ही इसको देखा होगा। खैर, फिल्म जैसी भी हो, ये गीत आपने
ज़रूर एक ना एक बार सुना होगा और शायद इसके बारे में
आपने मालूमात करने की कोशिश भी की हो। ये गीत मेरी
पसंद का गीत है। मजरूह सुल्तानपुरी ने गीत लिखा हैं और
आवाजें हैं आशा और रफ़ी की। इस फिल्म में चंद्रशेखर
और अनीता गुहा मुख्य कलाकार हैं। चित्रगुप्त की विविधता
का अंदाज़ा लगाने के लिए ये गीत सुनना ज़रूरी है ।
गीत के बोल:
आना है तो चले आओ सुहानी शाम है
ऐसे में आपसे दिल को ज़रूरी काम है
हमको भी तो, कसम ले लो, कहाँ आराम है
पहलू में दर्द है लब पे तुम्हारा नाम है
इतना ही तुमसे हमको था कहना
दिल में समाना दिल ही में रहना
इतना ही तुमसे हमको था कहना
दिल में समाना दिल ही में रहना
इस दिल को तुमसे यही काम है
आना है तो चले आओ सुहानी शाम है
ऐसे में आपसे दिल को ज़रूरी काम है
है डाली डाली उल्फत की माला
रंगों में डूबा फूलों का प्याला
है डाली डाली उल्फत की माला
रंगों में डूबा फूलों का प्याला
जैसे मोहब्बत का एक जाम है
हमको भी तो, कसम ले लो, कहाँ आराम है
पहलू में दर्द है लब पे तुम्हारा नाम है
हल्का सा अब तो करके इशारा
गिरते हुए को देना सहारा
हल्का सा अब तो करके इशारा
गिरते हुए को देना सहारा
तेरी ही नज़रों का ये काम है
आना है तो चले आओ सुहानी शाम है
ऐसे में आपसे दिल को ज़रूरी काम है
हमको भी तो, कसम ले लो, कहाँ आराम है
पहलू में दर्द है लब पे तुम्हारा नाम है
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