बात कोई मतलब की है ज़रूर-अपराधी कौन १९५७
आशा भोंसले की आवाज़ में है और इसके बोल भी मजरूह
ने लिखे हैं। उस ज़माने के क्लब सोंग के अंदाज़ वाला ही ये गीत
है। बस 'मतलब' शब्द को मैट-लैब (एक सॉफ्टवेयर )
बना के गाया गया है। ये भी एक अंदाज़ है आशा भोंसले का।
नाचने वाली नायिका का नाम मुझे नहीं मालूम। जो भी है
आकर्षक है और उसने आकर्षक परिधान भी पहन रखा है।
गीत के बोल:
बात कोई मतलब की है ज़रूर
नहीं तो कब आते इधर हुज़ूर
बात कोई मतलब की है ज़रूर
नहीं तो कब आते इधर हुज़ूर
क्यूँ हो जी घबराये
सर झुकाए शर्माए
क्यूँ हो जी घबराये
सर झुकाए शर्माए
हम गरीबों में आये
था तुम्हे तो था बड़ा गुरूर
बात कोई मतलब की है ज़रूर
नहीं तो कब आते इधर हुज़ूर
बात कोई मतलब की है ज़रूर
नहीं तो कब आते इधर हुज़ूर
कुछ करते और कुछ कहते
हम कभी ऐसे नहीं थे
कुछ करते और कुछ कहते
हम कभी ऐसे नहीं थे
हाँ जी उलटे तुम्ही थे
दिलवरी के नशे में चूर
बात कोई मतलब की है ज़रूर
नहीं तो कब आते इधर हुज़ूर
बात कोई मतलब की है ज़रूर
नहीं तो कब आते इधर हुज़ूर
कोई जीते कोई हारे
ये तो दुनिया है प्यारे
कोई जीते कोई हारे
ये तो दुनिया है प्यारे
पास आओ हमारे
कहे बैठे हो इतने दूर
बात कोई मतलब की है ज़रूर
नहीं तो कब आते इधर हुज़ूर
बात कोई मतलब की है ज़रूर
नहीं तो कब आते इधर हुज़ूर
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Baat matlab ki hai zaroor-Apradhi kaun 1957
Artists: Lilian, Abhi Bhattacharya
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