Jun 14, 2010

हम तुम एक कमरे में बंद हों-बॉबी १९७३

कुछ दिन पहले अख़बार में शेरों की कम होती आबादी के बारे में खबर
पढ़ रहा था। पढने के बाद मेरे दिमाग में स्वतः ही एक गाना कौंधा-वो
था-फिल्म बॉबी का हम तुम एक कमरे में बंद हों ।

गीत में एक पंक्ति ऐसी है-हम तुम एक कमरे में बंद हो और शेर आ जाये।
अब शेर को कोई और काम तो है नहीं कमरे में घुसने के सिवा, और प्रेमियों
के मेल में दखलंदाज़ी के सिवा। सवाल ये है बंद कमरे में शेर कैसे आएगा-
छत तोड़ कर, या सूक्ष्म शरीर धारण कर के किसी छिद्र से प्रविष्ट हो कर।
खैर संभव है कि आबादी में शेर आये, क्यूंकि हम लोगों ने उसके रहने के
लिए जंगल छोड़े कहाँ हैं ?

आये दिन हम लोग अख़बार में या चैनल पर खबर पाते हैं कि आबादी में
शेर/चीता घुस आया। यही हाल रहा तो शायद आगे आने वाली पीढ़ियों को
शेर/चीता फोटो में देखने को मिलेंगे

ये गीत आनंद बक्षी का लिखा, लक्ष्मी कान्त प्यारेलाल का संगीतबद्ध किया
और लता मंगेशकर /शैलेन्द्र सिंह का गाया हुआ है। अपने ज़माने का बड़ा
हिट गीत है ये।



गीत के बोल:

बाहर से कोई अन्दर ना आ सके
अन्दर से कोई बाहर ना जा सके

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो

हम तुम एक कमरे में बंद हों
और चाबी खो जाए

हम तुम एक कमरे में बंद हों
और चाबी खो जाए

तेरे नैनों की भूल भलैया में
बॉबी खो जाए

हम तुम एक कमरे में बंद हों
और चाबी खो जाए

आगे हो घनघोर अँधेरा
बाबा मुझे डर लगता है
पीछे कोई डाकू लुटेरा
उम्, क्यूँ डरा रहे हो

आगे हो घनघोर अँधेरा
पीछे कोई डाकू लुटेरा
ऊपर भी जाना हो मुश्किल
नीचे भी आना हो मुश्किल

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो

हम तुम कहीं को जा रहें हों
और रास्ता भूल जाएँ
हो हो
हम तुम कहीं को जा रहें हों
और रास्ता पूल जाएँ

तेरे बैयाँ के झूले में सैयां
बॉबी झूल जाये

हम तुम एक कमरे में बंद हों
और चाबी खो जाए

हा हा, हा हा, आ हा हा
हा आ आ आ आ आ आ आ आ आ

बस्ती से दूर परबत के पीछे
मस्ती में चूर घने पेड़ों के नीचे
अनदेखी अनजानी सी जगह हो
बस एक हम हों और दूजी हवा हो

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो

हम तुम एक जंगल से गुजरें
और शेर आ जाये

हम तुम एक जंगल से गुजरें
और शेर आ जाये

शेर से मैं कहूं तुमको छोड़ दे
मुझे खा जाए

हम तुम एक कमरे में बंद हों
और चाबी खो जाए

ऐसे क्यों खोये खोये हो
जागे हो कि सोये हुए हो
क्या होगा कल किसको खबर है
थोडा सा मेरे दिल में ये डर है

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो

हम तुम यूँ ही हँसते रहे हों
और आंख भर आये

हम तुम यूँ ही हँसते रहे हों
और आंख भर आये

तेरे सर कि कसम तेरे गम से
बॉबी मर जाए

हम तुम एक कमरे में बंद हों
और चाबी खो जाए

तेरे नैनों की भूल भलैया में
बॉबी खो जाए

हम तुम,हम तुम एक कमरे में बंद हों
और चाबी खो जाए

हम तुम एक कमरे में बंद हों
और चाबी खो जाए
और चाबी खो जाए
.....................................................
Ham tum ek kamre mein-Bobby 1973

Artists: Rishi Kapoor, Dimple Kapadia

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