ओ पत्थर के भगवन-नास्तिक १९५४
युग से है।
कुछ हिंदी गीत भावनाओं को झंझोड़ने वाले और विचलित
सा करने वाले होते हैं फिल्म नास्तिक का ये गीत जब भी मैं
सुनता हूँ, मन में उथल पुथल सी हो जाती है।
एक मजबूर सी दिखाई दे रही नायिका इश्वर से शिकायत वाले
अंदाज़ में ये गीत गा रही है। सन १९५४ की फिल्म नास्तिक में ये
गीत है जिसको कवि प्रदीप ने लिखा है और धुन बनाई है
सी रामचंद्र ने। गीत ज्यादा प्रसिद्ध तो नहीं हुआ मगर
सी रामचंद्र के प्रशंसकों के लिए ये अनसुना नहीं है। नायिका का नाम
मुझे मालूम नहीं मगर गीत में आपको नायक अजीत और दुबले पतले
से आइ. एस. जौहर दिखाई देंगे।
गीत के बोल :
तेरे होते हुए आज मैं लुट रही
मेरे माथे पे लग रहा दाग
अरे पत्थर के भगवान
तू है कहाँ
तेरी दुनिया में लग जाए आग
तेरी दुनिया में लग जाए आग
तेरे होते हुए आज मैं लुट रही
लाज आती है मुझको ये कहते हुए
प्रभु अँधा ना बन आंख रहते हुए
लाज आती है मुझको ये कहते हुए
प्रभु अँधा ना बन आंख रहते हुए
मुझे डसने को आये हैं देख ज़रा
तेरी बस्ती के ज़हरीले नाग
अरे पत्थर के भगवान
तू है कहाँ
तेरी दुनिया में लग जाए आग
तेरे होते हुए आज मैं लुट रही
चाँद चंडी के टुकड़ों की खातिर यहाँ
चाँद चंडी के टुकड़ों की खातिर यहाँ
एक अबला के फूट रहे भाग
अरे पत्थर के भगवान
तू है कहाँ
तेरी दुनिया में लग जाए आग
तेरे होते हुए आज मैं लुट रही
किसी भाई की बिछड़ी हुई एक बहिन
बता कब तक करे तेरे दुखड़े सहन
किसी भाई की बिछड़ी हुई एक बहिन
बता कब तक करे तेरे दुखड़े सहन
आज जिंदा चिता पर हूँ मैं जल रही
जल रहे सब उम्मीदों के बाग़
अरे पत्थर के भगवान
तू है कहाँ
तेरी दुनिया में लग जाए आग
तेरे होते हुए आज मैं लुट रही
मेरे माथे पे लग रहा दाग
अरे पत्थर के भगवान
तू है कहाँ
तेरी दुनिया में लग जाए आग
तेरे होते हुए आज मैं लुट रही
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