मेरा पढने में नहीं लागे दिल-कोरा कागज़ १९७४
है। यूँ कहिये आज ज्यादा प्रासंगिक है। आश्चर्य है की इसका 'मसाला '
'दुशाला, 'ऊट पटांगो छींको खांसो' मिक्स अभी तक क्यूँ नहीं बना।
फिल्म कोरा कागज़ के लिए संगीतकार कल्याणजी भाई और आनंदजी भाई
को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था। गाना फिल्माया गया है जया भादुड़ी पर और
साथ में नाजनीन नाम की नायिका दिखलाई दे रही हैं। नाजनीन गाना शुरू
करती है और नायिका बाद में साथ देने लगती है। विजय आनंद अर्थात मास्टरजी
की शकल दिखाई देने के बाद सिट्टी पिट्टी गुम जैसे भाव के साथ गाना रुकता है
और क्षणिक अन्तराल के बाद फिर चल पढता है।
गीत अपने ज़माने का ज़बरदस्त हिट गीत है और इसे गाया है लता ने । इसको
हम नटखट गीतों की श्रेणी में गिन सकते हैं।
गीत के बोल:
मेरा पढने में नहीं लागे दिल क्यूँ
मेरा पढने में नहीं लागे दिल
दिल पे क्या पड़ गई मुश्किल, उम्म्ह
अरे रात भी सूनी सूनी लागे
और दिन भी सूना सूना लागे
कोई ये तो बता दे
मुझे वो तो नहीं हो गया
मुझे वो तो नहीं हो गया
मेरा पढने में नहीं लागे दिल, हो
हो ओ ओ ओ, बैठे बैठे मन मुस्काए
बैठे बैठे मन मुस्काए
मैं ना जानूं वो क्यूँ याद आये
मैं ना जानूं वो क्यूँ याद आये
किस्से बातें करती हूँ मैं
अरे किस्से बातें करती हूँ
चुपके चुपके हंसती हूँ
कोई ये तो बता दे
मुझे वो तो नहीं हो गया
मुझे वो तो नहीं हो गया
मेरा पढने में नहीं लागे दिल, हो
हो, दिल में क्या है लिख नहीं पाऊँ
दिल में क्या है लिख नहीं पाऊँ
ख़त लिखूं तो उसे कैसे पहुँचाऊँ
ख़त लिखूं तो उसे कैसे पहुँचाऊँ
पास भी उसके जा ना सकूं मैं
अरे, पास भी उसके जा ना सकूं मैं
दूर भी उसके रह ना सकूं मैं
कोई ये तो बता दे
मुझे वो तो नहीं हो गया
मुझे वो तो नहीं हो गया
मेरा पढने में नहीं लागे दिल, क्यूँ
दिल पे क्या पड़ गई मुश्किल
अरे रात भी सूनी सूनी लागे
और दिन भी सूना सूना लागे
कोई ये तो बता दे
मुझे वो तो नहीं हो गया
मुझे वो तो नहीं हो गया
मेरा पढने में नहीं लागे दिल क्यूँ
0 comments:
Post a Comment