ये है रेशमी जुल्फों का- मेरे सनम १९६५
हिंदी फिल्मों में सभी वर्ग के दर्शकों का ख्याल रखा जाता है ये
बात ऐसे गीत देख कर समझ में आती है। अपने ज़माने के हिसाब
से ये लटके झटके वाला गाना कहा जा सकता है। आज के दौर के
लिए ये गीत शायद सोबर गीतों की श्रेणी में आये। हकीकत ये है कि
ऐसे गीत सिनेमा हॉल में आगे की कतार में बैठने वाले दर्शकों को ध्यान
में रख कर बनाये जाते थे। समय बदला और आगे पीछे क्या पूरे कुवें में
भंग नज़र आने लगी। आगे की कतार जिसका अपना महत्व हुआ करता
थे धीरे धीरे कम होता गया और मल्टीप्लेक्स आने के बाद तो लगभग
ख़त्म सा हो गया। अमूमन ऐसे गीत या तो हेलन पर फिल्माए जाते या
फिर किसी अन्य कुशल नृत्यांगना पर। प्रयोग समय समय पर होते रहे हैं
और आप इस गीत को उस ज़माने का आईटम -सोंग कह सकते हैं क्यूँ कि
फिल्म की सहायक नायिका पर इसको फिल्माया गया है। मजरूह के लिखे
गीत कि तर्ज़ तैयार की है ओ पी नय्यर ने। आशा भोंसले के ये चर्चित गीतों
में से एक है। कुल मिलकर गीत बढ़िया बन पड़ा है और सदाबहार है। गीत
में अभिनेत्री मुमताज़ कि आकर्षक ड्रेस कुछ वन्य जीवों की खालों की याद
दिलाती है।
गीत के बोल:
हं हं हं हं
हा हा हा हा, हां
ये है रेशमी, जुल्फों का अँधेरा, ना घबराइए
जहाँ तक महक है, मेरे गेसुओं की, चले आइये
ये है रेशमी, जुल्फों का अँधेरा, ना घबराइए
जहाँ तक महक है, मेरे गेसुओं की, चले आइये
ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा, ना घबराइए
जहाँ तक महक है, मेरे गेसुओं की, चले आइये
सुनिए, तो ज़रा, जो हकीकत है कहते हैं हम
खुलते, रुकते, इन रंगीन लबों की क़सम
जल उठेंगे दिए जुगनुओं की तरह
जल उठेंगे दिए जुगनुओं की तरह
ये तबस्सुम तो फरामैये,
हा हा हा हा, हां
ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा ना घबराइए
जहाँ तक महक है, मेरे गेसुओं की, चले आइये
ला ला ला ला
ला ला ला ला
ला ला ला ला
ला ला ला ला
प्यासी है नज़र, हाँ
ये भी कहने की है बात क्या
तुम हो मेहमान
तो ना ठहरेगी ये रात क्या
रात जाए, रहें आप दिल में मेरे
रात जाए, रहें आप दिल में मेरे
अरमान बन के रह जाइये,
हं हं हं हं, हा
ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा ना घबराइए
जहाँ तक, महक है, मेरे गेसुओं की, चले आइये
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