उस्तादी उस्ताद से-उस्तादी से १९८२
फिल्माई गई है रंजीता और विनोद मेहरा पर। थोड़ी कॉमेडी
वाली इस क़व्वाली में हैदराबाद से गाज़ियाबाद की सैर करवा दी
गई है। गीत में आपको मिथुन और गुज़रे ज़माने के हिट हीरो
भगवान भी दिखाई देंगे। गनीमत है जो खातून इसमें गा रही हैं
उन्होंने अपने तुगलकाबाद से होने का दावा पेश नहीं किया।
गीत के बोल :
इश्क का जो दावा जो करते थे
सारी महफ़िल से कहते थे
हाँ, इश्क का जो दावा जो करते थे
सारी महफ़िल से कहते थे
हुस्न का तोड़ेंगे गुरूर वो
जाने फिर मेरे हुज़ूर वो
क्यूँ नहीं आये यहाँ
हो चली है शब् जवान
नहीं अच्छी मोहतरमां
इस कदर भी बेसब्री
हम वो उस्ताद हैं वो
जो कभी हारे ना बाज़ी, हाँ
मर्द का यूँ उलझना
वो भी औरत से तौबा
एक उस्ताद की ये
नहीं है शान क़िबला
कौन असली है डर है
कौन असली है कौन नकली है
कौन असली है डर है
राज़ कैसे खुलेगा
अरे हट
असली हैदर हैं हम
हैदराबाद के
असली हैदर हैं हम
हैदराबाद के
नहीं चलेगी
नहीं चलेगी, हाँ
नहीं चलेगी नहीं चलेगी
उस्तादी उस्ताद से
चुप
बागी हैदर हैं हम
गाज़ियाबाद के
बागी हैदर हैं हम
गाज़ियाबाद के
नहीं चलेगी नहीं चलेगी
नहीं चलेगी नहीं चलेगी
उस्तादी उस्ताद से
असली हैदर हैं हम
हैदराबाद के
हाँ, बागी हैदर हैं हम
गाज़ियाबाद के
हमसे उलझा है जो वो हारा है
छोड़ दो जिद ये माल हमारा है
जान दे देंगे जिद ना छोड़ेंगे
ओ माल हाथों से जाने ना देंगे
तू चीज़ की ऐ
निब्बू बांध निचोड़ा तैनू
क्या चीज़ छिब्बा ते
लगती वांग दिलो वान तैनू
सुनो गज़ियाबादी
खुद को ना समझो बागी
अरे जा हैदराबादी
उड़ा जायेंगे बाज़ी
आ अगर ऐसा दावा है
तो फिर हम भी हैं राज़ी
बच के
टूटे ना शीशा टकरा के फौलाद से
टूटे ना शीशा टकरा के फौलाद से
अजी नहीं चलेगी नहीं चलेगी
नहीं चलेगी नहीं चलेगी
उस्तादी उस्ताद से
असली हैदर हैं हम
हैदराबाद के
बागी हैदर हैं हम
गाज़ियाबाद के
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Ustadi ustad se-Ustadi Ustad se 1982
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