आसमान के नीचे-ज्वैल थीफ १९६७
फिल्म ज्वैल थीफ का एक गीत शैलेन्द्र ने लिखा और बाकी गीत
मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे, कारण आपको इस फिल्म का पहला
गीत सुनवाते वक़्त बताया गया था।
इस फिल्म के सभी गीत लोकप्रिय हुए। प्रस्तुत गीत एक फुरसती सा
गीत है, फिल्म की सिचुएशन के हिसाब से। नायक नायिका सज संवर
के बाग़ में गीत गा रहे हैं। देव आनंद का जो सिर पर टोपी रखने का
अंदाज़ है वो काफ़ी सारी ४०-५० के दशक की विलायती फिल्मों में
आप देख सकते हैं। अच्छी बात है, कोई भी स्टाइल जो पसंद आये उसे
अपना लेना चाहिए। इस स्टाइल का बहुत इस्तेमाल हुआ है फिल्मों
में।
वास्को-डी-गामा को धरती पर दूसरे देशों की खोज का श्रेय जाता है
तो हिंदी फिल्मों के निर्देशकों को भी धन्यवाद् देने की ज़रुरत है जिनकी
वजह से हमें दूसरे देशों के बारे में जानकारी मिलती है । आम जनता
विलायत की सैर के ख्वाब देखती रहती है लेकिन ये हसरत फिल्मों के
माध्यम से, अधूरी ही सही, देख देख कर पूरी अवश्य हो जाती है ।
गीत गाया है लता और किशोर ने। गीत की धुन है सचिन देव बर्मन की।
ये काफ़ी घिसा हुआ अर्थात बजा हुआ युगल गीत है और आपने इसको
एक ना एक बार ज़रूर सुना होगा।
गीत के बोल:
आसमान के नीचे,
आसमान के नीचे ...आगे
हम आज अपने पीछे
हम आज अपने पीछे ... फिर
प्यार का जहाँ बसा के चले
कदम के निशां बना के चले
आसमान के नीचे
हम आज अपने पीछे
प्यार का जहाँ बसा के चले
कदम के निशां बना के चले
आसमान के नीचे
हम आज अपने पीछे
प्यार का जहाँ बसा के चले
कदम के निशां बना के चले
तुम चले तो फूल जैसे आँचल के रँग से
सज गई राहें, सज गई राहें
पास आओ मै पहना दूँ चाहत का हार ये
खुली खुली बाहें, खुली खुली बाहें
जिस का हो आँचल खुद ही चमन
कहिये वो क्यूँ हार बाहों के डाले
अरे आसमान के नीचे
हम आज अपने पीछे
प्यार का जहाँ बसा के चले
कदम के निशां बना के चले
बोलती हैं आज आँखें कुछ भी न आज तुम
कहने दो हमको, कहने दो हमको
बेखुदी बढ़ती चली है अब तो ख़ामोश ही
रहने दो हमको, रहने दो हमको
इक बार एक बार, मेरे लिये
कह दो खनकें, लाल होंठों के प्याले
आसमान के नीचे
हम आज अपने पीछे
प्यार का जहाँ बसा के चले
कदम के निशां बना के चले
साथ मेरे चल के देखो आई हैं धूम से
अब की बहारें, अब की बहारें
हर गली हर मोड़ पे वो दोनों के नाम से
हमको पुकारे, तुमको पुकारे
कह दो बहारों से, आए न इधर
उन तक उठ कर, हम नहीं जाने वाले
आसमान के नीचे
हम आज अपने पीछे
प्यार का जहाँ बसा के चले
कदम के निशां बना के चले
...............................
Aasman ke neeche-Jewl Thief 1967
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