दो घूँट मुझे भी पिला दे-झील के उस पार १९७३
सिद्धांत बहुत काम का है। ब्लॉग जगत में भी यही बात
लागू होती है। मेरे ब्लॉग पर भी लागू होती है। मुझे अभी
तक विलायती या अप्रवासी हिंदी प्रेमी भारतीयों में से केवल
२-३ बंधु ही ऐसे मिले जो ब्लॉग पर नियमित रूप से नज़र
डाला करते हैं। इस ब्लॉग को बेहतर बनाने के सुझाव और
टिप्पणियों की ज़रुरत महसूस होती है कभी कभी। स्वतः
प्रेरणा से एक सीमा तक ही कुछ किया जा सकता है।
आइये आपको आज एक फरमाइशी गीत सुनवाते हैं। ये गीत है
फिल्म झील के उस पार से। गीत फिल्माया गया है मुमताज़ पर।
मुमताज़ के साथ जो कलाकार हैं परदे पर, उनका नाम अनवर
हुसैन है जो अभिनेत्री नर्गिस के भाई हैं।
इस गीत को आप शराबी गीतों की श्रेणी में रख लीजिये।
गीत के बोल:
दो घूँट मुझे भी पिला दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
हो, दो घूँट मुझे भी पिला दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
बालमा रे, ज़ालिमा,
अरे अरे अरे अरे,
आग पानी मैं लगा दे ज़रा सी,
देख फिर होता है क्या
हो, दो घूँट मुझे भी पिला दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
गाऊंगी रे, नाचूंगी रे
तेरे लिए आज से मैं
आये शरम, लेकिन बलम ,
मर जाऊंगी लाज से मैं
गाऊंगी रे, नाचूंगी रे
तेरे लिए आज से मैं
आये शरम, लेकिन बलम,
मर जाऊंगी लाज से मैं
बालमा रे, ज़ालिमा,
अरे अरे अरे अरे,
लाज का ये घूंघट उठा दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
हो, दो घूँट मुझे भी पिला दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
किस काम का ये जाम है
इसमें मज़ा वोह नहीं है
भर के भी यह ख़ाली सा है
इसमें नशा वो नहीं है
किस काम का ये जाम है
इसमें मज़ा वो नहीं है
भर के भी यह ख़ाली सा है
इसमें नशा वो नहीं है
साक़िया रे, साक़िया,
अरे अरे अरे अरे,
प्यार थोड़ा इस में मिला दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
हो, दो घूँट मुझे भी पिला दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
इस पे लिखा, इस में लिखा
आये मज़ा आज ऐसे,
तडपे जिया ऐसे मेरा
बुलबुल कोई कैद जैसे
इस पे लिखा, इस में लिखा
आये मज़ा आज ऐसे,
तड़पे जिया ऐसे मेरा
बुलबुल कोई कैद जैसे
थोड़ी या पे रंज़िया,
अरे अरे अरे अरे, एक बार,
एक बार, पहरा हटा दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
दो घूँट मुझे भी पिला दे शराबी,
देख फिर होता है क्या
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Do ghoot mujhe bhi pila de-Jheel ke us paar 1973
Artists: Mumtaz, Anwar Husaain
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